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    टीके के 5 रुपये

     

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    टीके के 5 रुपये


    एक युवक की नई-नई शादी हुई। नास्ते के समय उन्होंने सभी को बारी-बारी से नमस्ते की। यहां तक कि ससुराल में बर्तन मांजने वाली को भी । सालियां इस बात को ले उडी - वाह जीजाजी ! महरी को भी नमस्ते दाग दी।

    शान्त स्वर में युवक ने समझाया - इसके दो कारण हैं, एक तो यह कि मैं इन्सान - इन्सान में भेद नहीं रखता और दूसरा यह है कि घर से चलते समय मम्मी ने समझा दिया था कि ससुराल में सबको नमस्ते कर लेना, न जाने कौन टीके के पांच रुपये दे जाए।

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