दो रुपए के पुरखे !
दो रुपए के पुरखे !
पन्नूजी बाजार से निकले तो नजर पड़ी आर्टिस्ट की दुकान पर रखी किसी बहादुर सिपाही की तसवीर पर उन्हें वह तसवीर इतनी पसंद आई कि खरीदने का मन बना लिया।
दुकानदार ने कीमत बताई पचास रुपए, लेकिन पन्नूजी की जेब में निकले कुल अडतालीस रुपए। दूसरे रोज पन्नूजी जब पहुँचे, तस्वीर बिक चुकी थी।
एक-दो महीने बाद पन्नूजी अपने मित्र से मिलने पहुँचे तो बहादुर सिपाही की उसी तस्वीर को वहाँ लगा पाया ।
पूछ बैठे- क्यों मित्र यह तस्वीर किसकी ?
जवाब मिला हमारे परिवार के बुजुर्ग की है।
पन्नूजी बोले- दो रुपए कम पड़ गए, दोस्त । वर्ना ये हमारे बुजुर्ग होते ।
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