आरोग्य रक्षा का रहस्य
आरोग्य रक्षा का रहस्य
महाराज शीलभद्र वन-उपवनों में होते हुए तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। रात्रि को उन्होंने एक आश्रम के निकट अपना पड़ाव डाला। आश्रम में आचार्य दंपत्ति अपने कुछ शिष्यों के साथ निवास करते थे। शिष्यों का शिक्षण, ईश्वर आराधना, जीवन निर्वाह के लिए शरीर श्रम, इन्हीं में आश्रमवासियों का दिनभर का समय बीतता।
उस समय पर राजा शीलभद्र बीमार हो गए। चिकित्सकों के लिए दौड़-भाग शुरू हुई। कुशल वैद्य चिकित्सकों ने उन्हें स्वस्थ कर दिया। राजा ने आश्रमवासियों के एकांत जीवन पर विचार किया तो उन्होंने एक वैद्य स्थायी रूप से आश्रमवासियों की चिकित्सा के लिए रख दिया।
वैद्य को वहाँ रहते काफी समय बीत गया, किंतु कोई भी शिष्य या आचार्य अपनी चिकित्सा के लिए उनके पास नहीं आया। वैद्यराज अपने निष्क्रिय जीवन से क्षुब्ध हो गए। एक दिन उकता कर वह आचार्य के पास गए और बोले-"गुरुदेव! मुझे इतना समय हो गया यहाँ रहते किंतु कोई भी विद्यार्थी या व्यक्ति मेरे पास चिकित्सा के लिए नहीं आया, इसका क्या कारण है ?"
"वैद्यराज! भविष्य में भी शायद ही कोई आपके पास चिकित्सा के लिए आएगा। प्रत्येक आश्रमवासी को सुबह से सायं तक श्रम करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त जब तक भूख परेशान नहीं करती कोई भी भोजन नहीं करता। सब अल्पभोजी हैं। जब कुछ भूख शेष रह जाती है तभी खाना बंद कर देते हैं। इस प्राकृतिक और स्वच्छ वातावरण में सभी को पवित्र वायु, प्रकाश मिलते हैं। यहाँ सर्वत्र जीवन छिटक रहा है इसलिए कोई भी बीमार नहीं पड़ता।" आचार्य ने कहा।
वैद्यराज बोले-"आचार्य प्रवर! स्वस्थ रहने के लिए यही मूल मंत्र हैं। तब मैं यहाँ रहकर क्या करूँ? अब मेरा राजदरबार को लौट जाना ही उचित है।"
आचार्य को प्रणाम कर वैद्यराज आश्रम से वापस चले गए।
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