गूंगे का गुड - ओशो
गूंगे का गुड - ओशो
बुद्ध से किसी ने पूछा था कि आपके साथ दस हजार भिक्षु हैं, इनमें से कितने लोगों को वह ज्ञान उपलब्ध हो गया है, जो आपको हुआ है? बुद्ध ने कहा, बहुतों को। पर उन्होंने कहा, वे पहचान में नहीं आते। तो बुद्ध ने कहा, फर्क इतना है कि मैं बोलता हूं, इसलिए तुम पहचान लेते हो, वे चुप हैं, इसलिए तुम नहीं पहचानते। मैं भी चुप होता, तुम मुझे भी नहीं पहचानते। बहुतों को हुआ है। पृथ्वी पर बहुत लोगों ने सत्य जाना है। लेकिन नाम हम गिनाते हैं, उतने ही नहीं हैं, वह तो बहुत कम संख्या है। वह तो सिर्फ उन लोगों की संख्या है, जिन्होंने सत्य जाना है और साथ में टीचर होने की जिनकी संभावना है। साथ में जो शिक्षक भी हो सकते थे, जो कह भी सकते थे, संवादित भी कर सकते थे, समझा सकते थे। लेकिन जितने हम नाम जानते हैं, उतने सबको हुआ भी नहीं है। कुछ तो उनमें ऐसे ही थे, जो सिर्फ समझा सकते थे। जिनको हआ कुछ भी नहीं है।
तो हमारे बड़े नामों में सब सच भी नहीं है। और हमारे बहुत छोटे नामों में जो खो गए हैं, बहुत सच हैं। उनका कोई पता नहीं चलता है। दुनिया मग सत्य जानने वाले सभी लोगों का पता नहीं चलता है, क्योंकि हमें पता तो बोलने से चलता है, और कोई उपाय नहीं है। यह जरूरी नहीं है कि आपको हो जाए खयाल, तो आप समझा भी सकें। बहुत बार ऐसा होता है कि गूंगे का गुड हो जाता है। लगता है कि कुछ मुझे पता है, लेकिन कैसे कहूं? और जब कही जाती है और दूसरा तर्क उठता है, तो बड़ी मुश्किल हो जाती है कि कैसे समझाऊं उसको? पीड़ा होती है, लेकिन समझाना बहत मुश्किल होता है।
- ओशो
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