वास्तुशास्त्र - चहार दीवार और घर में से किसका पहले निर्माण करवाना उचित है
चहार दीवार और घर में से किसका पहले निर्माण करवाना उचित है
चहार दीवार
वास्तु के दो प्रकार होते हैं। गृहवास्तु और परिसर वास्तु। परिसर के निम्नोन्नत स्थान, भारी निर्माण, जल प्रवाह आदि का प्रभाव प्रहरी पर होता है। इसलिए वास्तु में प्रहरी की प्राधान्यता होती है। अतः प्राचीन ऋषियों ने प्रहरी के निर्माण में सावधानी बरतने को कहा है।
प्रश्न उठता है कि घर का निर्माण पहले करें या प्रहरीका। वास्तु विचार से पता चलता है कि प्रहरी का निर्माण ही पहले करें। प्राकार (चहार दिवारी) से ही घर को बल एवं आकार प्राप्त होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार शुभ स्थल का निर्णय करने के पश्चात्त स्थल शुद्धि करना है। उसके बाद ईशान्य में एक खाई/कुँआ या बोर डालने के बाद प्रहरी का निर्माण आरंभ करना है। यदि पहले से ही ईशान्य में कुँआ हो तो उसे बन्द नहीं करना है।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण की दीवारों के समाहार को ही प्रहरी कहते हैं। इनमें एक दीवार के न होने से भी प्रहरी असंपूर्ण होगी। एक ओर दूसरों की दीवार ही क्यों न हो चारों ओर दीवारों का होना अनिवार्य है। प्रहरी के दक्षिण एवं पश्चिमी दीवारें ऊँची तथा उत्तर एवं पूर्वी दीवारें उनसे कुछ कम ऊँचाई के हो सकते हैं। जमीन के दक्षिण एवं पश्चिमी स्थान उन्नत तथा पूरब और उत्तरी स्थान निम्न होना चाहिए। यदि जमीन के पश्चिम, दक्षिण तथा नैरुति में पेड हों तो उन्हें किसी हालत में गिराना नहीं। लेकिन पूरब, उत्तर तथा ईशान्य में ऊँचे पेड नहीं होना चाहिए। हाँ कुछ फूल की कुँडियाँ रख सकते हैं।
नैरुति के निर्माण के समय दक्षिण-पश्चिम 90° का होना अनिवार्य है। साथ ही साथ पूर्वोत्तर में कुछ बढत हो तो बहुत अच्छा है। लेकिन पूरब एवं उत्तर के सरहद में किसी प्रकार का निर्माण नहीं होना है। खाली जगह पश्चिम से पूरब में ज्यादा और दक्षिण से उत्तर में ज्यादा होना है। ट्राक्टर आदि वाहनों के आने जाने की सुविधा के लिए प्रहरी के द्वार चौडे तथा विशाल होना है। हाल ही में लोग प्रहरी के निर्माण में भी पिल्लर सिस्टम अपना रहे हैं। इसके लिए नीचे बताये हुए तरीखे में पहले उत्तर से शुरू करके पूरब में, वायुव्य में, आग्नेय में फिर दक्षिण में, पश्चिम में और आखिर में नैरुति में खोद लेना है।
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