नया मनुष्य, तो नए नियमों की आवश्यकता- ओशो
नया मनुष्य, तो नए नियमों की आवश्यकता
नियम से अच्छापन नहीं आया। यह हमारी आदमियत आज इसी तरह की है। खतरे इसमें हैं, इसमें खतरे बिलकुल दूसरी तरह के होंगे, जो मैं कह रहा हूं। इसमें खतरे वे नहीं हैं जो पिछली परंपरा में थे, इसमें खतरा सिर्फ एक ही है नया मनुष्य, तो नए नियमों की आवश्यकता कि थोड़ी देर लगेगी और धैर्य भी रखना पड़ेगा। बस, और कुछ भी नहीं। धैर्य की बहत कमी है। मां बाप चाहते हैं कि बेटा आज ही बूढा हो जाए। कैसी पागलपन की बातें हैं। बूढे का जिंदगी भर का अनुभव बेटे पर आज कैसे थोपा जा सकता है? बेटा बूढा होते-होते बूढा हो जाता है। वक्त लगेगा, समय लगेगा। और जल्दी में नुकसान हो सकता है। जल्दी मग यह हो सकता है कि उसमें विकास की प्रक्रिया ही ठप्प हो जाए, और वह हमेशा के लिए बच्चा हो जाए। या कभी भी क्रोध मेच्योर न हो सके। वक्त लगेगा, बच्चे के साथ थोड़ी समझ से काम लेना पड़ेगा, बहत धैर्य रखना पड़ेगा। आनेवाली पीढ़ियों के साथ अगर धैर्य नहीं रखा गया, तो खतरा दुनिया के सामने है। बहुत धैर्य की जरूरत है।
बड़ी शक्ति जब प्रकट होती है तो धैर्य की जरूरत पड़ती है। बड़ी शक्ति प्रकट हो रही है पृथ्वी पर। ऐसी कभी भी प्रकट नहीं हुई। मनुष्य चेतना ऐसी जगह आ गयी है, जहां से छलांग लगेगी, जहां से बिलकुल नए मनुष्य का जन्म होगा। तो ऐसी जगह पर बड़े संकट का, क्राइसिस का मौका भी होता है। मौका खड़ा है। अगर पुराने मन ने जिद्द की कि हम पुराने नियम जारी रखेंगे, तो भी छलांग लगेगी, लेकिन तब सब टूटकर छलांग लगेगी। सब नष्ट हो जाएगा। उसमें अच्छा भी जाएगा, बरा भी जाएगा। लेकिन अगर पुराने मन ने थोड़ी समझ जाहिर की और नयी संभावना प्रकट हो रही है, नया जो मनुष्य प्रकट हो रहा है उसको समझने की कोशिश की, तो बहत फर्क पड़ जाएगा।
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