प्रश्न-- ओशो आप जो बोलते हैं, वह तो आम वर्ग में छायी हुई है और आप कहते है कि आप उससे अलग बात बताते हैं, तो जो यहां के आचार्य नास्तिक होना बोले तो वह पुराने जमाने में नास्तिकपन था।
प्रश्न--आप जो बोलते हैं, वह तो आम वर्ग में छायी हुई है और आप कहते है कि आप उससे अलग बात बताते हैं, तो जो यहां के आचार्य नास्तिक होना बोले तो वह पुराने जमाने में नास्तिकपन था।
जब भी कोई परंपरा मरने के किनारे पहुंचती है, तो आखिरी उपाय बचन का, वह यह बचता है कि जो नया है, वह हम में है ही। यह आखिरी उपाय है, किसी भी मरती हुई संस्कृति का, कि वह अंत में दावा यह करती है कि जो भी कहा जा रहा है उसके खिलाफ, वह हमारे भीतर है। तो यह अंतिम उपाय है। हां, बिलकुल ही उस जगह खड़ा है, जहां से उसको मिटना पड़ेगा। क्योंकि हिंदूइज्म का ही सवाल नहीं है पूर्ण माइंड का--वह चाहे जैन का हो, चाहे बौद्ध का हो, चाहे मुसलमान का हो सबका है। प्रश्न--स्पष्ट रिकाघडग ओशा--कभी नहीं। बुद्ध को एक्सेप्ट किया उसने उसी क्षण में जब, उसका बचना मुश्किल हो गया। और एक्सेप्ट करके, हिंदइज्म ने बुद्ध की पूरी की पूरी व्याख्या और अवस्था बदल दी।
बौद्ध धर्म तो मर गया हिंदुस्तान में। और बुद्ध ने जो कहा था, उसकी सारी व्याख्या हिंदू धर्म ने अपने अनुकूल कर ली। हिंदू धर्म ने कभी कुछ स्वीकार नहीं किया है। व्याख्याएं बदलने में हिंदू धर्म कुशल है। स्वीकार कभी नहीं किया है। व्याख्या बदलकर स्वीकार करना बड़ी कुशलता की बात है। हिंदूइज्म मरना नहीं चाहता किसी भी कीमत पर, जिंदा रहना चाहता है किसी भी कीमत पर! क्योंकि असल में जो भी चीज पैदा होती है, उसे एक समय तो मरने की तैयारी दिखानी चाहिए, अन्यथा वह बोझिल हो जाती है।
- ओशो
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