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    प्रश्न- ओशो आप जो कुछ कह रहे हैं, उसमें आप कहां तक पहुंचे हैं? क्या कोई इतना ऊंचा फल दिखाई दे रहा है?

    Question-Osho-where-have-you-reached-in-what-you-are-saying-Is-anyone-seeing-such-a-tall-fruit


     प्रश्न आप जो कुछ कह रहे हैं, उसमें आप कहां तक पहुंचे हैं? क्या कोई इतना ऊंचा फल दिखाई दे रहा है?

    ओशो, इन सब बातों में इतने जल्दी फल दिखाई देते। और भारत जैसे मुल्क में, जहां परंपराएं बहुत पुरानी और बहुत जड़ हो गयी हैं, फल देखने की जल्दी भी नहीं करनी चाहिए। वैसे भी फल के प्रति मैं बहुत उत्सुक नहीं हूं। हमें जो ठीक दिखाई पड़ता है, उसके लिए श्रम करना चाहिए। अगर वह ठीक है, तो फल आएगा--आज, कल हमारे न होने पर। यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। ठीक क्या है, उसकी दिशा में श्रम करना उचित है। लेकिन ऐसा कह सकते हैं कि हल दिखाई देने भी शुरू हए। क्योंकि उत्सुकता बढ़ी है और हजारों लोग उत्सुक हुए हैं। उस दिशा में चिंतन भी शुरू हुआ है, विचार भी शुरू हुआ है।

            और मेरी दृष्टि में विचार ही महत्वपूर्ण है। कर्म को मैं विचार की छाया मानता है। अगर एक बार विचार में बदलाहट आयी, तो कर्म में बदलाहट सुनिश्चित है। वह आएगी ही। मेरा लक्ष्य भी विचार की क्रांति से ज्यादा नहीं है। क्योंकि मेरी ऐसी समझ है कि भारत ने हजारों वर्षों से सोचना ही बंद कर दिया है। एक बार सोचने की धारा शुरू हो जाए, तो बड़ी से बड़ी क्रांति संभव है। और सोचने की धारा शुरू करेंगे, तो निगेटिव माइंड, वह निषेध करने वाला चित पैदा करना जरूरी है। इतना ही काम मैं कर रहा है। इनकार कर सकें, ऐसी वृत्ति पैदा हो जाए। वैसे हम हजारों साल से हो करने वाली कौम हैं, जोर हर बात में हां कहते हैं। स्वीकार हमारा भाव हो गया है।

    -ओशो 

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