Sunday, March 16.
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    प्रश्न--ओशो, यानी भौतिक साक्ष्य भी उपस्थित किया जा सकता है?

    Question-Osho-the-physical-evidence-may-be-present


    प्रश्न--यानी भौतिक साक्ष्य भी उपस्थित किया जा सकता है? 

    ओशो--बिलकुल उपस्थित हो गया है, यानी जो आदमी कार के संबंध में सोचता है, उसकी आंख पर कार का चित्र उभर आता है। आंख में भी कार दिखाई पड़ती है और कैमरे के सामने आप आंख पकड़िए, तो कैमरा भी कार पकड़ता है। और वह आदमी फिर सोचता है और ऐसी चीजें नहीं; जो उसने नहीं देखी है, वह भी। जैसे ताजमहल--और वह सोच रहा है जोर से, सोचता रहेगा और फिर आंख खोलेगा, और कैमरे में ताजमहल आ जाएगा। वह गहरे अटेंशन का प्रयोग हुआ। यहां काशी में एक विशुद्धान शून्य--विज्ञान वाले हैं--वह किसी भी चीज को, चिड़िया उड़ रही है उसको देखेंगे। आंख बद कर लेंगे, और चिड़िया फौरन गिर जाएगी और मर जाएगी। वे उसको गौर से देखेंगे, वह चिड़िया फड़फड़ाएगी और फिर उड़ जाएगी। यह सारा का सारा खेल ध्यान का है। हम जिस चीज पर ध्यान देते हैं, वह यथार्थ होनी शुरू हो जाती है, उसे आकार मिलने लगता है। यानी सच यह है कि हम एक दूसरे को निर्मित कर रहे हैं, पूरे वक्त। जैसा कि हम ध्यान दे रहे हैं वैसा ही वह निर्मित होता चला जा रहा है। यथार्थ मनुष्य के ध्यान की बाई प्रोडक्ट है कि जैसा ध्यान हो, वैसी चीजें बन जाती हैं, वैसा हो जाता है। तो फिर जब ध्यान चीजों पर होता है, बाहर होता है, दी अदर पर होता है, तू पर होता है, तो भीतर उसकी धारा नहीं रह जाती, बाहर जाने लगती है। और जब बाहर जाने लगती है, तो भीतर शून्य हो जाता है। क्योंकि वहां ध्यान होगा, तो वहां भी यथार्थ आ सकता है। नहीं तो वहां भी नहीं आएगा। ध्यान जहां जाएगा, वहीं यथार्थ आ जाएगा। यथार्थ का मतलब ही है दिया हुआ ध्यान, दिया गया ध्यान। वह वहां शून्य हो जाता है, 

            इसलिए यथार्थवादी कह रहा है कि आत्मा नहीं है। कहां है आत्मा? शून्य हो गयी आत्मा। तो वह पदार्थ पर ध्यान दे रहा है। पदार्थ है। इसलिए मेरा मानना है कि पदार्थवादी में और अध्यात्मवादी में बुनियादी भेद नहीं है, प्रक्रिया एक ही है, अध्यात्मवादी कह रहा है जगत नहीं है, और नहीं होने का दूसरा कोई कारण नहीं है। जगत उतना ही है अभी, जितना कि पदार्थवादी के लिए आत्मा है। वह उतना ही है, आकार नहीं ले पा रहा है, निराकार हो गया है। क्योंकि ध्यान जो आकार देता था, वह हट गया। और वह ध्यान अगर भीतर हो गया है केंद्रित, तो भीतर एक सता उघड जाती है, जो थी। लेकिन ध्यान न होने से पड़ी रहती है, पड़ती रहती है अनंतकाल तक, अनंत जन्मों तक, और उसका कोई पता नहीं चलता। पता चलेगा ही कैसे? ध्यान देंगे तो पता चलेगा। जो पोटेंशियल है, उसे एक्चुअल कर देता है ध्यान। जो अव्यक्त है, उसे व्यक्त कर देता है। और एक तरफ व्यक्त हो जाए, तो दूसरी तरफ अव्यक्त होगा; क्योंकि वहां ध्यान सिकोड़ लेना पड़ता है। और साक्षी में ध्यान सिकोड़ना पड़ता है। और उस पर लगा देना पड़ता है, जो भीतर है। तो दुनिया माया हो जाती है। जो लोग दुनिया को माया कह रहा हैं, और जो आत्माओं को इनकार कर रहे हैं, वे दोनों एक ही तरह के लोग हैं। दोनों सीक्रेट नहीं समझ पा रहे हैं। सीक्रेट केवल इतनी है कि जिस चीज पर ध्यान देते हो, वह हो जाता है, और जिस चीज पर ध्यान नहीं देते हो, वह नहीं होता है। दोनों अपत्तिजनम हैं। तो भी दोनों हैं, क्योंकि दोनों हैं। हम उसको ही उघाड़ पाते हैं, जिस पर ध्यान देते हैं। यानी अगर साक्षी होकर भी मैं उसको नष्ट कर दूं, या अपने आपको नष्ट कर दं, तो दोनों ही भ्रामक हैं। दोनों ही भ्रामक हैं। अधूरे हैं। आधे सत्य हैं। और इसलिए दुनिया मुश्किल में पड़ी हुई है। नास्तिक के पास भी आधा सत्य है और आस्तिक के पास भी आधा सत्य है। कहना चाहिए, एक ही चीज के दो पहलू हैं आधे-आधे। इसीलिए किसी को हरा नहीं पाते। वह हराएंगे कैसे? दोनों के पास आधा-आधा है। 

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