प्रश्न--ओशो व्यक्ति को रिस्पेक्ट तो मिलती ही है, जैसे कृष्ण को मिला है।
प्रश्न--व्यक्ति को रिस्पेक्ट तो मिलती ही है, जैसे कृष्ण को मिला है।
ओशो--अगर यह कह रहे हों, तो मैं यही कह रहा हूं कि व्यक्ति का रिस्पेक्ट करना गलत है। तो फिर मेरी बात नयी हो जाएगी। यह सवाल नहीं है, मैं यह कह रहा हूं कि आप जान ही नहीं सकते कि कौन एनलाइटेंड सोल है और कौन नहीं है। और न आप तय कर सकते है। क्योंकि उसी कृष्ण को जैनों ने नर्क में डाल दिया है। एनलाइटेंड सोल का तो सवाल ही नहीं है। समझना चाहिए कारण। जैनों के क्राइटेरियन सोचने के, अहिंसा के हैं। तो कृष्ण इनलाइटेंड नहीं हो सकत; क्योंकि कृष्ण तो लोगों को हिंसा में ले गए हैं अतः उनको नर्क में डाला गया है। मैं तो यह कह रहा हूं कि अगर तुम कहते हो कि पुरानी धारणा कृष्णको, महावीर को, बुद्ध को, व्यक्तियों को आदर देने की है, तो मैं कहता हूं कि व्यक्तियों को आदर देनेवाला, बांधनेवाला सिद्ध हुआ है। व्यक्तियों को आदर देने की जरूरत नहीं है। तो फिर मेरी बात नयी हो जाएगी, अगर तुम कहते हो। और अगर पुरानी है, तो मैं झगड़ा नहीं करता कि पुरानी होने में मुझे कुछ विशेष दर्द है। मेरा कहना कुछ इतना है कि जो लोग यही सिद्ध करना चाहते हैं कि जो मैं कह रहा हूं, वही हमारी पोथी में कहा है, तो फिर मेरा उनसे क्या झगड़ा है? उनको क्या परेशानी है मुझसे? मैं तो यह कहता हूं कि अपने को रिस्पेक्ट करना पर्याप्त है
-ओशो
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