पुराना जो माइंड था, वह विश्वास पर खड़ा हुआ है, विचार पर खड़ा नहीं है - ओशो
पुराना जो माइंड था, वह विश्वास पर खड़ा हुआ है, विचार पर खड़ा नहीं है - ओशो
प्रश्न--व्यक्ति की बात है न तो विश्वास चाहिए।
ओशो--फिर वही बात हो गयी न। फिर तो यह आपको मानकर चलना पड़ेगा कि अचीव किया। यह तो विश्वास की बात हो गयी आपके। तो वही मैं कह रहा हूं कि पुराना जो माइंड था, वह विश्वास पर खड़ा हुआ है, विचार पर खड़ा नहीं है। कृष्ण को एक आदमी मान सकता है कि वह पहुंच गए, दूसरा आदमी मान सकता है कि नहीं पहुंचे। लेकिन विचार का कोई उपाय नहीं है कि पहुंचे या नहीं पहुंचे। क्राइस्ट या नहीं पहुंचे। एक मान सकता है कि पहुंच गए, दूसरा मान सकता है कि पागल हैं। यह बात विचार पर खड़ी हई नहीं है। यानी इसके लिए कोई विचार निर्णायक नहीं हो सकता है कि कृष्ण पहुंच गए या नहीं पहुंचे।
प्रश्न--अस्पष्ट है
ओशो--नहीं, नहीं टाइम कुछ पूव नहीं कर सका। जरा भी पुव नहीं कर सका, एक जैन नहीं समझा सका टाइम, कि कृष्ण पहुंच गए हैं। एक हिंदू को नहीं समझा सका, महावीर का समय गुजर जाना कि महावीर सर्वज्ञ हैं। टाइम की तो बात दर है। कितने ही करोड़ वर्ष बीत जाए, तो कुछ तय न होगा, क्योंकि तय क्या होगा? विश्वास करने में तय कभी होना ही नहीं है। जिसको विश्वास करना है, करना है। नहीं करना है, नहीं करना है। टाइम सिर्फ आइंटिफिक दुथ को पूव करता है, रिलीजस दुथ को पूव नहीं करता है। नहीं करता है इसलिए कि रिलीजस दुथ विश्वास पर खड़ा है। विश्वास का टाइम से कोई संबंध नहीं है। बिलकुल हैं, लेकिन विश्वास से वह नहीं जानी जा सकती। वह तो विचार का अतिक्रमण होगा, तब जानना होगा। इसका कोई विचार करे कि उस जगह पहुंच जाए, जहां विचार व्यर्थ हो जाए, तो ट्रांसेंडेंस होगी, लेकिन वह विश्वास से नहीं होती है। विश्वास तो विचार को बिलकुल प्राथमिक प्रक्रिया है।
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