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    जीवन के समस्त विचार सत्य विचार करने योग्य हैं, विश्वास करने के योग्य नहीं है - ओशो

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    जीवन के समस्त विचार सत्य विचार करने योग्य हैं, विश्वास करने के योग्य नहीं है - ओशो 

    प्रश्न--वह इतनी गति दे कि वह अल्टीमेटली अल्टीमेट चेतना...|

    ओशो--अभी तो अल्टीमेट का सवाल नहीं है। और मर्ज (विलीन) होती है या नहीं होती, यही मेरा कहना है। यह विचार करने की बात है। इसलिए ऐग्री करता हूं। वह विश्वास करने की __ बात है। यह विचार करने की बात है। वही मैं कह रहा हूं। पुराना मन कहता है कि विचार करो कि मर्ज (विलीन) होती है। और विश्वास करो कि इस भांति मर्ज होती है। झगड़ा मेरा यह नहीं है कि मर्ज (विलीन) होती है कि नहीं होती। झगड़ा मेरा यह है कि जीवन के समस्त विचार सत्य विचार करने योग्य हैं, विश्वास करने के योग्य नहीं है। अगर यह प्राइमरी है, तो फिर मैं जो कह रहा हूं, उसमें भेद हैं। भिन्नता है। क्योंकि पुराना मन बिलकुल दूसरी बात कहता है। 

            वह यह कहता है कि विचार मत करो, विश्वास करो। विश्वास प्राइमरी (प्राथमिक) बात है। और तुमने संदेह किया, शक किया कि भटक जाओगे। मेरा कहना यह है कि संदेह नहीं किया, तो कभी पहंच ही नहीं सकोगे। संदेह करोगे तो खोजोगे, प्रश्न करोगे, चिंतन करोगे, मनन करोगे, श्रम अनुसंधान करोगे, तो कभी न कभी पहुंच सकते हो। 

    प्रश्न--अस्पष्ट है। 

    ओशो--यह सवाल नहीं है। आप बिना जाने रख नहीं सकते कंपलीट कानिफिडेंस। इसको थोड़ा समझें--जब हम कहते हैं कंपलीट कान्फिडेंस। जिस बात को मैं नहीं जानता हूं उसे मैं कितना ही कान्फिडेंस रखने की कोशिश करूं, वह इनकंप्लीट रहेगा। क्योंकि बेसिकली, बुनियादी तौर पर मैं यह जानता ही रहूंगा कि मैं नहीं जानता। इसको भुलाया नहीं जा सकता। तुम थिंक (विचार करो या न करो, क्योंकि कंपलीट कान्फिडेंस भी थिंकिंग है और क्या हैं तुम यह सोचोगे न, कि मुझे कंपलीट कान्फिडें रखना है, तो क्या करोगे? यह कैसे करोगे? सोचोगे न?

    -ओशो

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