प्रश्न--ओशो आप जो पुराने जन्म से सेक्स की बातें समझकर अभी बोल रहे हैं, तो वह तो बहुत पुरानी हुई। पर अभी आप माडर्न इंटरप्रीटेशन लाकर क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए यह बताते हैं।
प्रश्न--आप जो पुराने जन्म से सेक्स की बातें समझकर अभी बोल रहे हैं, तो वह तो बहुत पुरानी हुई। पर अभी आप माडर्न इंटरप्रीटेशन लाकर क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए यह बताते हैं।
ओशो--समझा, समझा। अनुभव असल में कभी पुराना नहीं होता है, आपने चाहे पिछले जन्म में सेक्स जाना हो, चाहे कल रात जाना हो, चाहे आज जाना हो। और जब स्मृति जगती है, तो वह उस वक्त पुरानी जैसी नहीं होती है। जब स्मृति जगती है, अब आप भीतर प्रवेश करते हैं, तो जो स्मृति आपको अनुभव होती है, वह इतनी ही प्रेजेंट (वर्तमान) में होती है। स्मृति तो पास्ट (अतित) की होती है। जब होती है, प्रेजेंट में होती है, अभी होगी, अभी होगी।
प्रश्न--और वह कैसे होना चाहिए, यह आप इंटरप्रीट कर रहे हैं?
ओशो--यह तो सवाल ठीक ही है। अनुभव जब हमें होगा और जब हम बात करेंगे, तो इंटरप्रीटेशन शुरू होगा। मैंने क्या जाना, उसको तो कहने का कोई उपाय नहीं है। सिर्फ व्याख्या ही कर सकता हूं, तो भी हम जानते हैं। आपने प्रेम जाना है, फिर आप किसी को समझाएंगे। तब आप प्रेम के संबंध में किसी को समझाएंगे, तो आप व्याख्या ही कर रहे हैं। आप विचार ही कर रहे हैं। जो आपने जाना है, वह आपके विचार के पीछे खड़ा है। लेकिन जब आप किसी से कह रहे हैं, तो आप व्याख्या ही कर रहे हैं। अपने ही अनुभव की व्याख्या आप कर रहे हैं, इस भाषा में, इस स्थिति में, कि दूसरा समझ सके। और मेरा कहना सिर्फ इतना है कि मेरी व्याख्या को आप अगर पकड़ लेंगे, तो आप अनुभव को उपलब्ध नहीं होंगे। मेरी व्याख्या अगर आपको सिर्फ इतनी प्रेरणा दे सके, इतनी उथल-पुथल दे सके कि आप भी अनुभव की दिशा में जाना शुरू करें, तो कुछ हो सकेगा। तो मेरी व्याख्या अगर आपके विश्वास का आधार बन जाती है, तो आपकी मैं हत्या कर रहा हं, आपको मैं मार डाल रहा हूं। क्योंकि आप इसी व्याख्या को प्रेम समझ लेंगे जो कि प्रेम नहीं है। प्रेम कुछ और ही बात है और व्याख्या ही अलग बात है।
प्रश्न--आप जब यह कह रहे हैं कि इस तरह करना चाहिए, इस तरह होना चाहिए, तो आप भी लोगों को गाइड ही कर रहे हैं।
ओशो--नहीं, बिलकुल नहीं; कम्युनिकेशन, जो मेरे खयाल में हैं, मेरे अनुभव में हैं। गाइड बिलकुल नहीं कर रहा हूं।
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