जैसी करनी वैसी भरनी
जैसी करनी वैसी भरनी
किसी गाव मे एक बडा ही अभागा वैद्य रहता था। उसका ठीक वही हाल था-'जापै दया करि हाथ ___घरे, तेहि हाथ गहै जमराज सवेरे ।' बेचारे की कुछ चलती-चलाती नहीं थी।
कहावत है कि प्यासा आदमी कप के पास जाता है, कूप प्यासे के पास नही जाता । लेकिन उन वैद्य की रीति-नीति उलटी थी। वह स्वय रोगियो की ग्वोज में इधर-उधर चक्कर लगाया करता था । एक दिन सारे गाव का दौरा करने पर भी उसे कोई रोगी या दवा का ग्राहक नहीं मिला । वह उदास होकर व्हलता-टहलता गाव के बाहर तक चला गया । वहां एक वृक्ष के कोटर में उसने एक विषैले साप को सोते देवा । उसे देखते ही वैद्य को कुछ कमाने की एक नरसीव दूझ गई।
उन पेड से कुछ दूरी पर गाव के कई छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे। वैध ने सोचा कि यदि इनमे मे किसी लडके को साप से डसवा दू तो मुझे उसकी चिकित्सा का अवसर सहज मे मिल जाएगा और मैं एक अच्छी रकम पा जाऊगा।
पेट के लिए लोग बडे-बडे पाप करने को तैयार हो जाते है । वैद्य ने स्वार्थवश उन अवोध बालको के जीवन को घोर सकट मे डालने का निश्चय कर लिया। वह घूमता-घामता उन लडको के पास गया और बोला, "भाई, कोई मैना का बच्चा लेगा?"
एक चतुर बालक चटपट बोल उठा, "हा हा, मै लूंगा, कहा है दादा |"
वैद्य बोला, "मेरे साथ आओ, मैं दिखाता है । अकेले चलो, नही तो हल्ला-गल्ला सुनकर वह उड जाएगा।"
वह उस लडके को उस वृक्ष के पास ले गया। वहा कोटर की ओर इशारा करके उस दुष्ट वैद्य ने कहा, "देखो, उसी कोटर मे है, धीरे-धीरे जायो, हाथ डालकर निकाल लायो।" __लडके ने वृक्ष पर चढकर कोटर मे हाथ डाला । - वहा उसकी मुट्ठी में जो भी चीज पाई उसे उसने चट' पट पकड़कर बाहर निकाला। देखा तो मैना के बच्चे की जगह उनके हाथ मे सांप की गरदन आ गई थी।
उसने उसी समय झटके के साथ उस साप को दूर फेक दिया । सयोग से वह वैद्य ही के सिर पर जाकर गिरा । वैद्य अपने बचाव के लिए बडे जोर से उछला, लेकिन साप उसकी गर्दन से लिपट ही गया । लाख कोशिश करने पर भी वैद्य उस सांप से छुटकारा नही पा सका। उसे अपनी करनी का फल तुरन्त मिल गया । साप ने उसे डस लिया । वह वही छटपटाकर गिर पडा और कुछ ही क्षणो मे मर गया।
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