महात्मा विदुर से जानिए विद्द्वान पुरुष की क्या पहचान होती है
अपने वास्तविक स्वरूपका ज्ञान, उद्योग, दुःख सहनेकी शक्ति और धर्ममें स्थिरता-ये गुण जिस मनुष्यको पुरुषार्थसे च्युत नहीं करते, वही विद्द्वान कहलाता है ॥
जो अच्छे कर्मोंका सेवन करता और बुरे कर्मोंसे दूर रहता है, साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके वे सद्गुण विद्द्वान होनेके लक्षण हैं ।।
क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दण्डता तथा अपनेको पूज्य समझना----ये भाव जिसको पुरुषार्थसे भ्रष्ट नहीं करते, वही विद्द्वान कहलाता है ॥
दूसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहलेसे किये हुए विचारको नहीं जानते, बल्कि काम पूरा होनेपर ही जानते हैं, वही विद्द्वान कहलाता है ॥
सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, सम्पत्ति अथवा दरिद्रता-ये जिसके कार्यमें विघ्न नहीं डालते वही विद्द्वान कहलाता है ॥
जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थका ही अनुसरण करती है और जो भोगको छोड़कर पुरुषार्थका ही वरण करता है वही विद्द्वान कहलाता है ॥
विवेकपूर्ण बुद्धिवाले पुरुष शक्तिके अनुसार काम करनेकी इच्छा रखते हैं और करते भी हैं तथा किसी वस्तुको तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना नहीं करते ।
विद्वान् पुरुष किसी विषयको देरतक सुनता है किंतु शीघ्र ही समझ लेता है, समझकर कर्तव्यबुद्धिसे पुरुषार्थमें प्रवृत्त होता है-कामनासे नहीं; बिना पूछे दूसरेके विषयमें व्यर्थ कोई बात नहीं कहता है। उसका यह स्वभाव विद्द्वान की मुख्य पहचान है ॥
विद्द्वान की-सी बुद्धि रखनेवाले मनुष्य दुर्लभ वस्तुकी कामना नहीं करते, खोयी हुई वस्तुके विषयमें शोक करना नहीं चाहते और विपत्तिमें पड़कर घबराते नहीं हैं ॥
जो पहले निश्चय करके फिर कार्यका आरम्भ करता है, कार्यके बीचमें नहीं रुकता, समयको व्यर्थ नहीं जाने देता और चित्तको वशमें रखता है, वही विद्द्वान कहलाता है ॥
विद्द्वानजन श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नतिके कार्य करते हैं तथा भलाई करनेवालों में दोष नहीं निकालते हैं ॥
जो अपना आदर होनेपर हर्षके मारे फूल नहीं उठता, अनादरसे संतप्त नहीं होता तथा गङ्गाजी के कुण्डके समान जिसके चित्तको क्षोभ नहीं होता, वह विद्द्वान कहलाता है॥
जो सम्पूर्ण भौतिक पदार्थोंकी असलियतका ज्ञान रखनेवाला, सब कार्योक करनेका ढंग जाननेवाला तथा मनुष्योंमें सबसे बढ़कर उपायका जानकार है, वही मनुष्य विद्द्वान कहलाता है ।
जिसकी वाणी कहीं रुकती नहीं, जो विचित्र ढंगसे बातचीत करता है, तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली है तथा जो ग्रन्थके तात्पर्यको शीघ्र बता सकता है, वही विद्द्वान कहलाता है ॥
No comments