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    जिस दिन आपने दया देना शुरू किया, प्रेम खत्म- ओशो

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    जिस दिन आपने दया देना शुरू किया, प्रेम खत्म- ओशो

    एक लड़की को मैं जानता है। उसका डायवोर्स हो गया है, पति से अलग हो गयी है। तो मां बाप उसकी बहुत चिंता करने लगे कि वह दुखी न रह जाए। तो कभी उससे नाराज न होते। नाराजगी का मौका होता तो भी वह टाल जाते; क्योंकि वह बहुत ही दुखी है। उसको कोई दुख नहीं देना है। वह जो कहती, मान लेते हैं--मानने योग्य हो या न हो। वह जो मांगह करती, पूरी कर देते, चाहे वह उनके खर्च की सीमा के भीतर हो या न हो। मां बाप इस खयाल में थे कि वह उस लड़की को सुखी कर सकें। उस लड़की ने मुझसे कहा कि मैं इस घर में एक मिनट नहीं रहना चाहती हूं। 

            ऐसा लगता है कि मुझे कोई भी प्रेम नहीं करता है; क्योंकि कोई मुझे न कभी इनकार करता है, न मुझसे की नाराज होता है। ऐसा लगता है कि मैं यहां--मेरा किसी से कोई गहरा संबंध नहीं है। ऐसा लगता है कि सब मेरे साथ अभिनय कर रहे हैं कि वे क्रोध भी करना चाहते हैं, पर नहीं करते। कहीं मुझसे दुख न लग जाए। ऐसा लगता है कि सब मुझ पर दया कर रहे हैं, और दया बहुत अपमानजनक है। कभी आपने खयाल किया है कि दया बहुत अपमानजनक है? प्रेम का सब्स्टीटयूट नहीं होता। जिसको हम प्रेम करते हैं, वह दया नहीं मानता और जिस दिन आपने दया देना शुरू किया, प्रेम खत्म। वह जानता है कि प्रेम खत्म हो चुका है; क्योंकि दया जिस पर हम करते हैं, वह नीचा हो जाता है, दीन हो जाता है, हीन हो जाता है। प्रेम जिसे हम करते हैं, उसको समान तल पर खड़ा करते हैं। दया हम जिस पर करते हैं, उसको नीचे खड़ा कर देते हैं। कोई पत्नी दया नहीं चाहती पति से। कोई बेटा अपनी मां से दया नहीं चाहता। प्रेम करता है। प्रेम वक्त पर नाराज भी होता है। असल में प्रेम हीन नाराज हो सकता है। 

            क्योंकि प्रेम को पता है, नाराजगी से कुछ भी टूटनेवाला नहीं है। प्रेम इतना गहरा है कि नाराजगी से कुछ भी टूटनेवाला नहीं है। प्रेम इतना गहरा है कि नाराजगी की गहरी से गहरी चोट भी सिर्फ वृक्ष को हिलाएगी, और कुछ भी नहीं कर पाएंगी। थोड़ी देर बाद हवाएं चली जाएंगी, वृक्ष अपनी जगह खड़ा हो जाएगा। सिर्फ प्रेम ही क्रोध कर सकता है। जिससे हमने प्रेम नहीं किया है, उससे हम क्रोध भी नहीं कर सकते। इसीलिए अजनबी से हमारा क्रोध नहीं होता। जिससे हम जितने ज्यादा निकट हैं, उससे हमारा क्रोध होता है। जितनी निकटता बढ़ती है, उतनी क्रोध की संभावना बढ़ती है। क्रोध का उपयोग अगर कोई सीख ले, तो क्रोध की तीखी छाया प्रेम की ही होती है। 

    - ओशो

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