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    प्रश्न-- ओशो आज की प्रतिभा जो वह भविष्य की है? यह भी आप ठीक करते हैं।

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    प्रश्न--आज की प्रतिभा जो वह भविष्य की है? यह भी आप ठीक करते हैं। 

    ओशो - असल में प्रतिभा सदा ही भविष्य की होती है। जिसे हम आज समझ पाते हैं कि प्रतिभा है, उसे हम इसलिए समझ पाते हैं कि वह प्रतिभा नहीं है और अतीत की प्रतिभाओं की कुछ नकल है। तो हम समझ पाते हैं। सच में आज जो प्रतिभाशाली व्यक्ति पैदा होगा, उसकी प्रतिभा को मापने के न तो आज मापदंड हैं, न आंख है, न लोग हैं, न हवा है। सौ दो सौ वर्ष लग जाएंगे। प्रतिभाशाली आदमी की दोहरी कठिनाइयां हैं। वह अपनी प्रतिभा से सजन भी करे, और अपनी प्रतिभा पहचानने के योग्य मापदंड और हवा भी खड़ी करे, ऐसा मरकर भी नहीं हो पाता। और अक्सर ऐसा होता है कि दो चार सौ वर्ष बीत जाने पर खयाल में आ पाता है वह आदमी। यह भी ठीक कहते हैं आप। बहत चरम प्रतिभा की जो बात है, वह तो सदा ही भविष्य की है। और उसे स्वीकृति आज तक तो नहीं मिली, लेकिन मेरा मानना है कि समाज ऐसा होना भी चाहिए, कि चाहे हम प्रतिभा को आज बिलकुल माप न पा रहे हों, जांच भी न पा रहे हों, अनबूझ हो, न कल चांद भी पकड़ में आती हो, तो भी समाज ऐसा चाहिए कि भविष्य की संभावनाओं को आदर देता हो। 

            अब तक हम सिर्फ अतीत की उपलब्धियों को आदर देते रहे हैं, भविष्य की संभावनाओं को नहीं। अतीत की उपलब्धियों को आदर न दें, तो भी चल जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि आज अगर बुद्ध की प्रतिभा पहचान ली जाए, और हम आदर भी दें, तो फर्क क्या पड़ता है? बात खत्म हो गयी है। लेकिन भविष्य की संभावनाओं को पहचानना बहुत जरूरी है, क्योंकि होनेवाला है। और अगर हम उसे पहचानते हैं, तो उसके होने में साथी और सहयोगी बन जाएंगे। वास्तविकता देखने में तो बहुत ही सरल है। एक बगीचे में फूल खिले हैं, तो कोई भी देख लेता है। लेकिन बीच की संभावनाओं को पहचानना पारखी की बात है। समाज ऐसा भी होना चाहिए कि वह भविष्य की संभावनाओं को भी अंगीकार करता हो। और भूल-चूक के लिए राजी होता हो। क्योंकि जब भी नए रास्तों पर कोई चलता है, तो गिरता है, भूल-चूक भी करता है, भटकता भी है। 

            यानी मेरा कहना यह है कि भटकने को एक बार ही बुरा नहीं मान लेना चाहिए, अगर हमें संभावनाओं को आदर देना हो तो। और, जितने मापदंड हमारे पास हों, उनको अंतिम नहीं मान लेना चाहिए--अगर हम संभावनाओं को आदर देना चाहते हैं। हमें इस बात का बोध होना चाहिए कि जो जाना गया है, जो पाया गया है, वह बहुत थोड़ा है उसके सामने, जो जाना जाएगा और जो पाया जाएगा। इसका बोध अगर समाज को हो, तो यह कठिनाई नहीं होगी। भविष्य की प्रतिभा को भी खयाल में रखना जरूरी है।

    -ओशो

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