क्रोध से एकदम इनकार कर देना खतरनाक है- ओशो
क्रोध से एकदम इनकार कर देना खतरनाक है- ओशो
क्रोध एकदम इनकार कर देना खतरनाक है। प्रकृति और परमात्मा क्रोध दे रहा है। उसका कहीं अर्थ है। एक आदमी हो, ऐसा सोचे जिसे जन्म से क्रोध नहीं है, तो आप पाएंगे कि उसमें जीवन ही क्षीण हो गया है। सब तरह से सुस्त, ढीला और असली हो होगा। और उसे किसी के लिए भी गतिमान नहीं किया जा सकता। अगर आप उसको गाली देंगे, तो वह बैठकर सुनेगा। अगर आप उसे धक्का मारेंगे, तो वह धक्का सह लेगा और रह जाएगा। अगर आप उससे कहेंगे कि सब दूसरे आगे निकले जा रहे हैं, तुम आगे नहीं निकल रहे हो, तो वह कहेगा ठीक है। अगर उसके भीतर क्रोध का तत्व नहीं है, तो भीतर गति का तत्व भी नहीं होगा।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि क्रोध शुभ है। मतलब केवल इतना है कि क्रोध एक सीमा तक सार्थक है। फिर वह व्यर्थ होना शुरू हो जाता है। एक सीमा तक क्रोध भी सीढ़ी है, और एक सीमा के बाद खतरनाक है। एक उम्र तक क्रोध का होना जरूरी है। और एक उम तक क्रोध सिखाया जाना चाहिए, बजाए रोके जाने के। लेकिन बच्चों को ऐसा अनुशासन सिखा दें कि क्रोध बरा है, क्रोध पाप है, क्रोध नहीं करना है, तो बच्चा क्या? वह सिर्फ क्रोध को दबाएगा, सप्रेस करेगा, अपने को रोकने की कोशिश करेगा। और ध्यान रहे, छोटा-छोटा क्रोध निकल जाए, तो खतरनाक नहीं होता। क्रोध इकट्ठा हो जाए तो खतरनाक होता है। रोज अगर क्रोध निकले, तो उसकी मात्रा इतनी कम होगी जिसको कोई हिसाब नहीं। वह ऐसा ही होगा। जैसे रोज घर का कचरा बाहर फेंक देते हैं। कचरा फेंकना बंद कर दें, कचरा पैदा होना जारी रहेगा, तो घर में महीने दो महीने में घूरा लग जाएगा और रहना मुश्किल हो जाएगा। तब कचरा फिर फेंकना पड़ेगा। लेकिन तब वह कचरा बहत दिखाई पड़ेगा और खतरनाक भी हो सकता है।
क्रोध भी यदि थोड़ा बहुत निकल जाए, तो खतरनाक नहीं है। इकट्ठा कर लें अगर हम क्रोध को, तो वह खतरनाक है।समझा यह जाता है कि लोग हत्याएं करते हैं, आत्म हत्याएं करते हैं, वे ऐसे लोग हैं, जो क्रोध को इकट्ठा कर लेते हैं। जो आदमी रोज-राज क्रोध कर लेता है, वह कभी हत्या नहीं कर पाता। वह उतना क्रोध नहीं जुटा पाता कि किसी की हत्या करने के लिए पागल या उत्तेजित हो जाए। इतने पागलपन के लिए एक ज्यादा मात्रा चाहिए। तो रोज छोटी-छोटी बात में क्रोधित हो जाने वाला आदमी खतरनाक नहीं होता है, कभी बहुत खतरा नहीं कर सकता है। एक आदमी--रोज छोटे-मोटे क्रोध कर लेने वाला आदमी-- सरल होगा। इस आदमी की बजाय जो क्रोध दबाता चला जाएगा, वह बहत जटिल हो जाएगा। उसके भीतर क्रोध की इतनी मात्रा इकट्ठी हो जाने वाली है कि एक दिन विस्फोट हो होगा। वह विस्फोट महंगा पड़ता है। उस विस्फोट का कोई भी परिणाम हो सकता है।
- ओशो
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