ओम् एक गुप्त कुंजी है - ओशो
ओम् एक गुप्त कुंजी है - ओशो
ओम् एक गुप्त कुंजी है। जब मैं कहता हूं कि गुप्त कुंजी, तो मेरा अर्थ है कि वह अंतिम ध्वनि से मिलती-जुलती है। यदि आप उसका उपयोग कर सकें और उसके साथ-साथ धीरे-धीरे भीतर गहरे में जा सकें, तो आप अंतिम द्वार तक पहुंच जाएंगे, क्योंकि वह मिलता-जुलता है और वह और भी अधिक मिलेगा, यदि आप कुछ बातें और करें। जैसे, यदि आप ओम् का उच्चारण करें, तो आपको अपने होंठ काम में लेने पड़ते हैं-आपका शरीर-यंत्र भी काम में लेना पड़ता है और तब बहुत कम सादृश्यता होगी। एक बहुत ही मोटी यांत्रिकता काम में लेनी पड़ती है और वह उसे विकृत कर देती है। ओम् एक मोटी वस्तु में बदल जाता है। अपने होंठ काम में मत लें; केवल अपने भीतर अपने मन की सहायता से ओम् की ध्वनि उत्पन्न करें। अपने शरीर को भी काम में मत लें, तब वह और भी मिलती-जुलती होगी; क्योंकि तब आप एक और अधिक सूक्ष्म माध्यम का उपयोग करेंगे। वह और भी अच्छी फोटो पेश करेगा। मन का भी उपयोग न करें। प्रथम, ऊपरी शरीर को काम में लें, फिर उसे छोड़ दें। फिर मन को काम में ले। बस भीतर ओम् शब्द की ध्वनि उत्पन्न करें। तब उसे भी बंद कर दें और ध्वनि को प्रतिध्वनित होने दें। कोई भी प्रयास न करें, यह अपने से आता है; तब यह वह जप बन जाता है। तब आप उसे उत्पन्न नहीं कर रहे, आप तो मात्र उसके प्रवाह में हैं। तब वह और भी गहरा चला जाता है, और वह और भी अधिक वास्तविकहो जाता है। आप उसे एक कंजी की भांति काम में ले सकते हैं। जब वह बिना प्रयत्न के होने लगे, जब वह आपके शरीर के बिना होने लगे बिना मन के होने लगे और जब केवल ध्वनि ही आपके भीतर प्रवाहित होने लगे, तो आप उसके बहुत समीप हैं।
अब केवल एक चीज और गिरा देनी है-उसे जो कि ओम् की ध्वनि को अनुभव कर रहा है-वह मैं ईगो, वह अहं जो कि अनुभव कर रहा है कि ओम् की ध्वनि मेरे चारों तरफ ओर गूंज रही है। यदि आप इसे भी गिरा दें, तब कोई बाधा नहीं रहती और फोटो की नकल असली फोटो में बदल जाती है। इसलिए यह गुप्त कुंजी है। यह ओम् बहुत अदभुत है। यह रहस्यविदों के लिए उतना ही आधार भूत है, जितना कि आइंस्टीन का सापेक्षता का नियम भौतिक शास्त्र के लिए। उस फारमूला में भी तीन बातें हैं-एक चिन्ह, एक संकेत व एक गुप्त कुंजी। इस ओम् में भी तीन बातें हैं, परन्तु आधारभूत में यह एक गुप्त कुंजी है। जब आप उससे द्वार न खोलें, तब तक इसके बारे में सोचना बिलकुल व्यर्थ है; समय, जीवन व शक्ति सब करना है।
- ओशो
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