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    वे बच्चे अभागे हैं, जिनको मां बाप न कभी उन पर ज्वलंत क्रोध नहीं किया- ओशो

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    वे बच्चे अभागे हैं, जिनको मां बाप न कभी उन पर ज्वलंत क्रोध नहीं किया- ओशो

    दो चीजें हैं: अगर हम बेहोश हैं, तो क्रोध हमें जैसा चाहेगा वैसा कर डालेगा। और अगर हम होश में हैं, तो क्रोध से हम जो करना चाहेंगे वह कर लेंगे। तो पहला कदम क्रोध का अंत करने का हनीं होगा।विवेक विकसित होगा तो क्रोध का सदुपयोग शुरू होगा। दूसरा कदम, जब सदुपयोग में पूरा सामर्थ्य व्यक्ति का पैदा हो जाता है, तो अब दुरुपयोग क्रोध का नहीं हो सकता है, अर्थात अब क्रोध उससे दुरुपयोग नहीं करवा सकता है, वह बेहोश नहीं है। उसने होशपूर्वक क्रोध को इंस्ट्रमेंट और साधन बना लिया है। जब यह समझ पैदा हो जाती है, तब उसे दिखाई पड़ता है कि सदुपयोग में भी गहरे नुकसान पहुंच रहे हैं। यह तब तक दिखाई नहीं पड़ता है, जब तक हम सदुपयोग करना न सिख लें। तब दिखाई पड़ता है, सदुपयोग तो हो रहा है, लेकिन दूसरे के लिए हो रहा है। 

            जैसे एक बाप अपने बेटे पर नाराज हो रहा है। कभी नाराजगी बहत काम की होती है, कभी बहुत सार्थक हो सकती है। कभी बच्चों के मन पर उस नाराजगी के क्षण में कोई ऐसी छाप पड़ सकती है, जो जिंदगी भर के लिए कीमती हो जाए। लेकिन वह उपयोग करनेवाले पर निर्भर है। एक ऐसी छाप भी पड़ सकती है कि जिंदगी भर के लिए बाप दुश्मन हो जाए। सच तो यह है कि अगर बाप क्रोध करना जानता हो, तो बाप को क्रोध में बेटे को प्रेम का पता चलेगा ही। अगर उपयोग करना जानता है, तो जानेगा कि यह प्रेम का सबूत है। अगर बाप उपयोग करना जानता हो, तो क्रोध में प्रेम ही दिखाई पड़ेगा, और उपयोग करना न जानता हो, तो प्रेम में भी प्रेम दिखाई पड़नेवाला नहीं है। बाप प्रेम करेगा और बेटा समझेगा कि कोई तरकीब है--कुछ करवाने के इरादे में है। 

            और वे बच्चे अभागे हैं, जिनको मां बाप न कभी उन पर ज्वलंत क्रोध नहीं किया। ज्वलंत क्रोध करना बड़ी बात है। ज्वलंत क्रोध का मतलब हैं कि मां बाप पूरी तरह इनकार कर रहे हैं अपने-अपने पूरे व्यक्तित्व को, कि यह गलत है। थोप नहीं रहे हैं उसके ऊपर कि तू भी गलत मान, लेकिन उनके पूरे व्यक्ति को गलत लग रही है वह बात, और वह आशा से भर गए हैं। यह छाप अगर बच्चे पर छूट जाए तो उपयोगी हो सकती है, लेकिन सिर्फ उपयोग करनेवाला ही यह छाप छोड़ सकता है।

    - ओशो

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