ओम् ध्यान है - ओशो
ओम् ध्यान है - ओशो
ओम् ध्यान है इसका सतत स्मरण करना। ओम्-ओम्-यह शब्द बहुत कीमती है-महत्वपूर्ण है एक संकेत की भांति, इशारे की तरह वे गुप्त कुंजी की तरह। इसलिए सर्वप्रथम इसे ही खोलें। ओम् में पांच मात्राएं हैं। पहली मात्रा है अ; दूसरी है ओ; तीसरी है म्। ये तीन स्थूल चरण हैं। जब हम ओम् शब्द को बोलते हैं, तो ये तीन अक्षर होते हैं। परन्तु ओम् का उच्चारण करें और अंत में जो म् आता है वह मण्मणम् गुंजरित होगा। वह आधी मात्रा है-चौथी। तीन स्थूल हैं और सुनी जा सकती हैं।
चौथी आधी स्थूल है। यदि आप काफी सजग हैं तो ही यह सुनी जा सकेगी अन्यथा यह खो जाएगी। और पांचवी कभी नहीं सुनी जाती। जब कि ओम् शब्द का गुंजार होता है, तो वह गुंजार ब्रह्म के शून्य में प्रवेश कर जाती है। जबकि ओम् की ध्वनि चली जाती है और ध्वनिशून्यता बच रहती है, वही पांचवीं मात्रा है। आप ओम् का उच्चारण करते हैं, तब अ-ओ-म बड़े स्पष्ट सुनाई पड़ते हैं, तब एक पीछे चला आता मण्मणम् की आधी मात्रा और तब उसके बाद ध्वनिशन्यता। वही पांचवीं है। यह जो पांचवीं है, केवल इशारा है, बहत सी चीजों की ओर। प्रथम, उपनिषदों का जानना है कि मनुष्य की चेतना पांच भागों में बंटी है। हम मोटी-मोटी तीन को जानते हैं-जागरण, स्वप्न गहरी निद्रा। ये तीन मोटे-मोटे चरण है-अ-ओ-म। उपनिषद चतुर्थ को तुरीय कहते हैं। उन्होंने उसका कोई नाम नहीं दिया, क्योंकि वह कुछ बड़ी मात्रा नहीं। चौथा वह है जो कि गहरी नींद के प्रति भी सजग रहता है। यदि आप गहरी निद्रा में थे, गहरी स्वप्नरहित निद्रा मैं, तो सुबह आप कह सकते हैं, मैं गहरी, बहुत गहरी नींद में था। कोई आपके भीतर जागता था और अब स्मरण करता है कि बहुत गहरी स्वप्नरहित नींद थी। एक साक्षी वहां मौजूद था। वह साक्षी ही चौथे के नाम से जाना जाता है।
परन्तु उपनिषद कहते हैं कि वह चौथा भी अंतिम नहीं है, क्योंकि साक्षी होना भी अभी अलग होना है। इसलिए जब वह साक्षी भी मिट जाता है, केवल तभी अस्तित्व बचता है बिना साक्षी के-वही पांचवीं है। इसलिए यह ओम् बहुत सी चीजों के लिए चिन्ह है-बहुत सी चीजों के लिए-मनुष्य के पांच शरीरों के लिए। उपनिषद उन्हें इस तरह बांटते हैं-अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानस्य व आनंदमय-पांच कोष हैं-पांच शरीर। यह ओम ह है। यह केवल एक चिन्ह है. लेकिन यह एक संकेत भी है। इसका क्या अर्थ है. जबकि मैं कहता हूं कि यह संकेत भी है? जब कोई अस्तित्व में गहरे जाता है जड़ों तक, बहुत गहरे, तो वहां विचार नहीं होते। विचार करने वाला भी वहां नहीं होता। विषय-बोध भी वहां नहीं होता, और न कर्ता का बोध ही होता है, परन्तु फिर भी, सब कुछ होता है। उस विचारशून्य, कर्ताशून्य क्षण में, एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह ध्वनि ओम की ध्वनि से मिलती है-मात्र मिलती है। वह ओम नहीं है; इसीलिए वह मात्र एक संकेत है। हम उसे फिर से उत्पन्न नहीं कर सकते। वह करीब-करीब मिलती-जुलती ध्वनि है। इसलिए वह कितनी ही ध्वनियों का समस्वर है, परन्तु सदैव ही ओम के सबसे अधिक पास है।
मुसलमानों व ईसाइयों ने उसे आमीन की तरह पहचाना है। वह ध्वनि जो कि सुनाई देती है, जब कि सब कुछ खो जाता है और केवल ध्वनि गूंजती रह जाती है ओम् से मिलती-जुलती होती है; वह आमीन से भी मिल सकती है। अंग्रेजी में बहुत से शब्द हैं-ओग्निप्रजेंट, ओनिशियन्ट, ओग्निपोटेंट-यह ओम्नि मात्र ध्वनि है। वास्तव में ओनिशियन्ट का अर्थ होता है। वह जिसने कि ओम् को देखा हो, और ओम् सब के लिए ही संकेत है। ओग्निपोटेंट का अर्थ होता है वह जो कि ओम् के साथ एक हो गया है, क्योंकि वही सब से बड़ी संभावना है सारे ब्रह्म की ध्वनि में भी मौजूद है। और वह ध्वनि सब को चारों तरफ से घेरे है, सर्व के ऊपर से बह रही है। ओमनिशियेन्ट, ओनिप्रजेंट व ओनिपोटेंट में जो ओनि है वह ओम् है। आमीन भी ओम् है। अलग-अलग साधक, अलग-अलग लोग भिन्न-भिन्न पहचान को पहुंचे हैं। परन्तु वे सब किसी भी प्रकार से ओम् से मिलते-जुलते हैं। आधुनिक विज्ञान विद्युतकणों को अस्तित्व की आधारभूत इकाई समझता है। परन्तु उपनिषद विद्युतकणों को नहीं, बल्कि ध्वनिकणों को आधार मानता है।
- ओशो
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