पिता के लिए आदर भीतरी हो सकता है, भय से नही - ओशो
पिता के लिए आदर भीतरी हो सकता है, भय से नही - ओशो
बाप बेटे से कह रहा है कि मैं तुम्हारा पिता हैं, इसलिए आदर करो। यह कोई तर्क का नियम थोड़े ही है। तुम पिता होने की जिद्द न करो। आदर आना होगा, आ जाएगा: नहीं आना होगा, नहीं आएगा। और मैं मानता हूं कि सिद्ध कर सके कोई कि मैं पिता हूं, तो आदर आता है। वह एक भीतरी अनुशासन है, उसको कोई रोक नहीं सकता है। यह असंभव है कि पिता के प्रति आदर न हो। लेकिन सिर्फ जन्म दाता पिता नहीं है। प्रोडयूसर, उत्पादक है, पिता नहीं है। और उत्पादक कह रहा है कि मैं पिता हं। इस तरह अनुशासन नहीं आनेवाला है। क्योंकि लड़के समझ रहे हैं, सिर्फ तुमने पदा कर दिया है, बस बात खत्म हो गयी। और पैदा कर दिया है तो कोई बहुत समझपूर्वक पैदा कर दिया है, ऐसा भी मालूम नहीं होता है। आकस्मिक घटना है। तुमने सोचा भी था? तुमने
मुझे निमंत्रण दिया था? ऐसा भी नहीं मालूम पड़ता। अतिथि हूं आकस्मिक हूं। तुमने झेल लिया है, दूसरी बात है। ठीक है, साथ हो गया है। पिता होने के लिए कुछ और करना पड़ेगा। पैदा करना काही नहीं है। और मैं मानता हं, कभी काफी नहीं था। पिता होना सिद्ध करना पड़ेगा। पिता होना बड़ी डेलीकेट, बड़ी नाजुक बात है। मां होने से ज्यादा नाजुक बात है। क्योंकि मां होना बहुत कुछ प्राकृतिक है। पिता होना बिलकुल ही अप्राकृतिक है। पिता होना बिलकुल सामाजिक घटना है। पिता के बिना काम चल सकता है। पिता कोई अनिवार्य बात नहीं है। पिता मनुष्य की संस्कृति की खोज है। मां तो होती ही, पिता के बिना हो सकती है। पिता का पता लगाना मुश्किल हो सकता है। यह जानकर आप हैरान होंगे कि अंकल, चाचा पुराना शब्द है, फादर, पिता बाद का शब्द है।
तीन चार हजार वर्ष तक पिता का कोई पता नहीं चलता था। स्त्रियां थी और पुरुष थे और किन में किन में संबंध होता था, कुछ पक्का नहीं था। पिता कौन है, यह पता नहीं चल सकता था। सब अंकल थे। जो एक उम्र के थे, वे सब अंकल थे। उनमें कोई पिता होगा। पिता तो बाद में आया है। जब थिर हो गयी बात, और पति पत्नी सुनिश्चित हो गए और एक घर बस गया और पति पत्नी तय हो गए। वह उनके ही बीच संबंध होता है, और किसी के बीच संबंध नहीं होता है, तक पिता आया। पिता नयी घटना है। और डर है कि विदा न हो जाए। इसका पूरा डर है। क्योंकि पिता की संस्था बहत योग्य सिद्ध नहीं हुई है, इसलिए विदा हो सकती है। रूस में या नए समाजों में चिंता हो रही है इस बात की कि पिता को विदा किया जो; क्योंकि संस्था कोई बहत योग्य साबित नहीं हई। खतरा इस बात का है कि पिता को बदला जा सके।एक नया इंतजाम हो सकता है। पिता सिद्ध करना पड़ेगा।
- ओशो
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