बुद्धिमानों की भीड़ इकट्ठी करना मुश्किल बात है- ओशो
बुद्धिमानों की भीड़ इकट्ठी करना मुश्किल बात है- ओशो
सिर्फ बुद्धुओं की भीड़ इकट्ठी की जा सकती है, बुद्धिमानों की भीड़ इकट्ठी करना मुश्किल बात है। तो जब भी भीड़ इकट्ठी की जाती है, तो भीड़ बुद्ध हो जाती है। क्योंकि इकट्ठे होने में ही सब खत्म हो जाता है। व्यक्ति टूट जाता है फौरन। जैसे ही एक आदमी ने कहा, मैं हिंदू हं, वह आदमी व्यक्ति की तरह खत्म हो गया। हिंद होने का जो अर्थ है, वह उसने स्वीकार कर लिया। अब वह व्यक्ति नहीं रहा, हिंदू भीड़ का एक हिस्सा हो गया। जिसने कहा, मैं मुसलमान हूं, उसने कहा, मैं अपने को खोता हूं। तुम्हारी बड़ी भीड़ का जो संकेत है मुसलमानों में, स्वीकार करता हूं और जो मुसलमान होने का अर्थ है वह स्वीकार करता हूं। मुसलमान होने का सब मुझे संदेह नहीं है, अब मुझे विचार नहीं करना है। मैं समझ गया।
जो ठीक था, वह मैंने पा लिया। बात खत्म होती है, मैं सम्मिलित होता हूं, मैं स्वीकार कर लेता हूं। जो आदमी मुसलमान बन गया, वह आदमी आदमी नहीं रह गया, सिर्फ एक संस्था का सदस्य हो गया। उसने अपने को खो दिया खत्म कर लिया। तो, मेरी बात कोई संस्था। कोई संगठन बनाकर नहीं पहुंचानी है। मुश्किल मामला है फिर पहुंचाना बहुत मुश्किल है। संस्था न हो, संगठन न हो, तो बात कैसे पहुंचती है। तो संस्था और संगठन का मैं बिलकुल दुश्मन ही हूं, एकदम दुश्मन हूं। बात पहुंचे या न पहुंचे, इसका मूल्य नहीं है। संस्था नहीं बननी है। संस्था बनी कि उससे स्वार्थ आए। स्वार्थ के पद आए, प्रतिष्ठा आयी, संघर्ष आया, चुनाव आया, पालिटिक्स आयी। कोई संस्था बिना पालिटिक्स के नहीं होती। व्यक्ति हो सकता है बिना राजनीति के। संगठन बिना राजनीति के कभी नहीं हो सकता। संगठन में राजनीति होगी ही। राजनीति वह नहीं कि जो राज्य के लोग करते हैं। राजनीति वह है, जो कोई समूह, पद और प्रतिष्ठा के लिए करता है। भीतरी राजनीति होती है।
अगर पांच सौ साधु मिलेंगे, तो भीतरी राजनीति शुरू हो जाएगी कौन आचार्य बने। कौन उपाचार्य हो, फिर कब आचार्य मरे और कब वह पद मिले। वह राजनीति उतनी ही है सख्त, जितनी की राष्ट्रपति की होगी, प्रधानमंत्री की होगी। इसमें कोई फर्क नहीं है। यह तो एक छोटा वृत्त है, जिसके भीतर खेल चलेगा। जहां संगठन हआ, वहां राजनीति होगी। इसलिए मैं कहता हं, संगठन मात्र राजनीतिक होते हैं। कोई संगठन धार्मिक हो ही नहीं सकता। धार्मिक संगठन भी हुआ तो वह फौरन राजनीतिक हो जाएगा। नाम धर्म का रहेगा, भीतर राजनीति शुरू हो जाएगी। संगठन नहीं बना है कोई भी इसलिए बड़ा दुष्कर काम है। बड़ा कठिन काम है, व्यक्ति की हैसियत से क्या हम कर सकते हैं? जो बात ठीक लगती है, और वह भी इसलिए नहीं कि मैं कहता हूं, अगर मैं कहता हूं, और आपको ठीक लग जाती है, और आप नहीं सोचते तो आप खतरनाक हैं। आप नुकसान पहुंचाएंगे। क्योंकि तब आप तोते की तरह दोहराएंगे, जो कि सदा से हो रहा है।
- ओशो
No comments