आत्म-पूजा उपनिषद -एक अपूर्व घटना - ओशो
आत्म-पूजा उपनिषद -एक अपूर्व घटना - ओशो
आपके लिए भी मेरा सुझाव है कि जब भी आप करान पढ रहे हों. या उपनिषद सन रहें हों. अथवा बाइबिल-तो हिंद न हों. ईसाई न हों या मुसलमान बिलकुल न हों। मात्र होना पर्याप्त है। आप गहरे में उतरने में समर्थ हो सकेंगे। मतों के साथ, सिद्धांतों के साथ, आप कभी खुले नहीं रह सकते। और एक बंद दिमाग समझ के धोखे कर सकता है, लेकिन कभी कुछ समझ नहीं सकता। इसलिए मैं किसी का भी नहीं हूं। और यदि मैं इस उपनिषद के प्रति प्रतिसंवेदन करता हूं। वह केवल इसलिए कि मैं इसके प्रेम में पड़ गया हूं। यह जो सब से छोटा उपनिषद है आत्म-पूजा, यह एक बहुत ही अपूर्व घटना है। इसलिए थोडा इस अनोखे उपनिषद के बारे में-कि मैंने क्यों इसको विषय रूप में बोलने के लिए चुना है? प्रथम-यह सब से छोटा है; यह बिलकुल बीज की तरह है-प्रबल, विशेष-जिसमें सब कुछ भरा हो। प्रत्येक शब्द एक बीज है, जिसमें कि अनंत संभावनाएं हैं।
इसलिए आप अनंतकाल के लिए ध्वनि व प्रतिध्वनि पैदा कर सकते हैं, और जितना आप इसके बारे में सोचते हैं उतना ही आप इसे गहरे में जाने देने में मदद करते हैं, व नए-नए अर्थ इसमें से प्रकट होते हैं। ये जो बीज की तरह शब्द हैं, ये गहरे मौन में पाए जाते हैं। सच ही यह बड़ा अजीब लगता है, परन्तु यह एक तथ्य है। यदि आपके पास बहुत कम कहने के लिए हो, तो ही आप ज्यादा कहेंगे। और यदि आपके पास वास्तव में ही कुछ कहने के लिए है, तो आप उसे कुछ ही पंक्तियों में, कुछ ही शब्दों में यहां तक कि एक ही शब्द में कह सकते हैं। जितना कम आपको कहना हो, उतने ही अधिक शब्दों का उपयोग आपको करना पड़ेगा। जितना अधिक आपको कहना है, उतने ही कम शब्दों का आपको उपयोग करना होता है। यह अब मनोवैज्ञानिकों के लिए जानी-मानी बात हो गई है। कि शब्द कुछ बोलने के लिए काम में नहीं लिए जाते, बल्कि कुछ छिपाने के लिए काम में लिए जाते हैं।
हम बोलते चले जाते हैं, क्योंकि हमको कुछ यदि आप कछ छिपाना चाहते हैं तो आप चप नहीं रह सकते क्योंकि आपका चेहरा उसे बोल देगा-आपकी चुप्पी उसे झंकारें कर देगी। अन्य शंकातुर हो सकते हैं कि आप कुछ छिपा रहे हैं। आप शब्दों के द्वारा धोखा दे सकते हैं; मौन के द्वारा आप धोखा नहीं दे सकते। उपनिषदों के पास वास्तव में ही कुछ कहने के लिए है, इसलिए वे उसे बीज रूप में कहते हैं-सत्रों में, छोटे-छोटे सूत्रों में। इस उपनिषद में केवल सत्रह सूत्र है। उन्हें आधे पृष्ठ पर लिखा जा सकता है; एक पोस्टकार्ड के एक साइड में ही इस पूरे उपनिषद को लिखा जा सकता है। पर यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश है। इसलिए हम हर एक शब्द बीज को लेंगे और उसके भीतर प्रवेश करने का प्रयत्न करेंगे-एक जीवंत संवेदन में उसके प्रति होने की कोशिश करेंगे। आपके भीतर हो सकता है कुछ तरंगित होने लगे, ऐसा प्रारंभ हो सकता है; क्योंकि ये शब्द बहुत ही प्रबल, शक्ति पूर्ण हैं। इनमें बहुत कुछ भरा है; यदि इनके अणुओं को तोड़ा जा सके, तो बहुत बड़ी तादाद में ऊर्जा निकलेगी। इसलिए खुले रहें; ग्राहक, गहरी श्रद्धा से भरे हुए रहें और इस उपनिषद को अपना काम करने दें।
- ओशो
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