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    क्रोध का उपयोग - ओशो

    Use-of-anger---Osho


    क्रोध का उपयोग - ओशो

    जब कोई व्यक्ति क्रोध का सम्यक उपयोग करना सीख जाता है, सम्यक क्रोध करना सीख जाता है, राइट एंगर, तब उसे पहली दफा दिखाई पड़ता है कि ठीक क्रोध से भी दूसरे की भूल लाभ हो जाए, लेकिन मुझे नुकसान ही नुकसान होता है। (कहीं न कहीं मेरे भीतर कुछ-कुछ सुविधा है।) तब वह क्रोध के ऊपर भी उठने का भी करेगा। लेकिन अब इस श्रम में दमन नहीं होगा। समझ होगी, बुद्धि और विवेक होगा। अगर आपको दिखाई पड़ जाए कि सांप जा रहा है, तो आपको सांप के ऊपर से चलने की इच्छा का दमन थोड़े ही करना पड़ता है। सांप दिख गया कि आप बच जाते हैं बिना दमन किए। सांप जा रहा है, और आप उस रास्ते से गुजरते थे, तो जब आपको सांप दिखता है कि जहर सामने है और आप बगल में हट जाते हैं, तो आपको कोई सप्रेशन थोड़े ही करना पड़ता है कि सांप पर से निकलने की बड़ी इच्छा थी, उसे दबाकर बगल में हट जाए। कोई दमन नहीं करना पड़ता है। सिर्फ अंडरस्टैंडिंग कि सांप है, छलांग लग जाती है, आप बच जाते हैं, सांप निकल जाता है। कभी पीछे यह आकांक्षा नहीं छूट जाती कि सांप के ऊपर से निकलना है। जब क्रोध भी सांप की तरह दिखाई पड़ने लगता है, अनुभव में आने लगता है, तो दमन नहीं करना पड़ता है। आप बस बचकर निकल जाते हैं। क्रोध एक तरफ हो जाता है, आप दूसरी तरफ हो जाते हैं। और जब क्रोध से आप बहुत बार बचकर निकल जाते हैं और दमन नहीं होता, तब क्रोध इकट्ठा नहीं होता है; क्योंकि क्षमता धीरे-धीरे क्षीण होती चली जाती है। एक क्षण आता है कि आदमी क्रोध के बिलकुल बाहर हो जाता है। यह भी हो सकता है, वैसा आदमी भी कभी क्रोध का उपयोग करे, लेकिन तब वह निपट एक्टिंग होगी, बिलकुल अभिनय होगा। उसमें इससे ज्यादा कुछ भी नहीं होने वाला है। 

    - ओशो

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