क्रोध एक बड़ी शक्ति है, जिसको सदुपयोग भी है और दुरुपयोग भी- ओशो
क्रोध एक बड़ी शक्ति है, जिसको सदुपयोग भी है और दुरुपयोग भी- ओशो
बच्चे जिते अच्छे ढंग से क्रोधित हो सकते हैं, बड़े नहीं हो सकते। और अगर बच्चे का क्रोध आपने देखा है, तो आप पाएंगे कि उस क्रोध में भी एक सौंदर्य है, एक गति है, एक डायमेंशन है। एक बच्चा जब पूरे क्रोध से भरता है--क्योंकि बच्चा पूरे क्रोध से भरता है--वह पैर पटक रहा है, वह चिल्ला रहा है, वह कूद रहा है, उसका कण-कण लाल हो गया है, आंखें जल गयी हैं। उस वक्त बच्चे को जगाने का हमें श्रम करना चाहिए कि तू देख, यह क्रोध क्या है? हम छोड़ ही देते इस कमरे को, द्वार बंद कर देते कि तू देख, कि तेरे भीतर क्या हो रहा है? ताकि क्रोध क्या है, इससे तू परिचित हो जाए। यह जिंदगी भरी साथ रहेगा, इससे बहत काम भी लेना है। क्रोध से परिचित करने की जरूरत है। और ऐसे ही जीवन की सारी वृतियों से, जिनको हम बुरा कहते हैं--सारी वृत्तियों से परिचित कराने की जरूरत है, इनकी पूर्णता में, पूरी गहराई में; तो हमारे भीतर एक विवेक, एक अवेयरनेस पैदा होती है कि क्रोध क्या है।
और यह भी पता चलता है कि क्रोध एक बड़ी शक्ति है, जिसको सदुपयोग भी है और दुरुपयोग भी। और मैं मानता हूं कि विवेक से आदमी धीरे-धीरे क्रोध का सदुपयोग करना सिखेगा, दुरुपयोग बंद करेगा। पहला कदम क्रोध खत्म करने का नहीं होगा, पहला कदम क्रोध के सदुपयोग का होगा। क्रोध के सदुपयोग हैं। जो आदमी क्रोध का सदुपयोग करने में समर्थ हो जाएगा, वह क्रोध करते क्षण में भी अभिनय ही करवाएगा, भीतर वह क्रोध के बाहर खड़ा होगा। नहीं तो फिर प्रयोग नहीं कर सकता है। हम जिस चीज का भी उपयोग करते हैं, उससे अलग हो जाते हैं। एक आदमी अगर इतना सचेत हो गया है कि क्रोध का भी सदपयोग करता है, तो वह आदमी कभी क्रोधित नहीं है। सिर्फ बाहर की घटना रह गयी है, जिसका वह उपयोग कर रहा है। और भीतर वह क्रोध से, बिलकुल बाहर है, तभी उपयोग कर सकता है, नहीं तो क्रोध उसका उपयोग कर लेगा।
- ओशो
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