जो सिर काटे आपना
जो सिर काटे आपना
ज्ञानप्राप्ति के लिए अति उत्सुक एक भक्त के आग्रह से एक दिन __ कबीर ने कहा-"वत्स, पैर के नीचे की शिला को उठा।" शिष्य ने तुरंत शिला उठाई। दोनों भीतर घुसे।अंदर एक दरवाजे पर लिखा था-'अपने कान काटने वाला इस दरवाजे को खोल सकेगा।
कबीर ने अपने दोनों कान काट डाले। वह दरवाजा खुला और कबीर अंदर गए और पुनः दरवाजा बंद हो गया। भक्त ने खोलने का प्रयत्न किया तो अंदर से आवाज आई कि मैंने जैसा किया वैसा करने पर ही द्वार खुलेगा। भक्त भी कान काटकर अंदर गया। दूसरे दरवाजे पर इसी प्रकार लिखा था। कबीर नाक काटकर अंदर घुस गए। भक्त ने भी अनुसरण किया और वह अंदर दाखिल हुआ। तीसरे पर लिखा था-'जिसको अंदर आना हो वह पहले अपना सिर काटे'। कबीर तो सिर उड़ा कर अंदर चले गए पर भक्त बाहर ही रहा। नाक, कान और मस्तक जाने के बाद क्या उपयोग? वह इसी विचार में डूबा हुआ था कि उसे नींद आ गई।
जब नींद खुली तो वहाँ दूर से कबीर आते दिखाई दिए। "क्या मेरी राह देख रहे हो"-कबीर ने पूछा। "मैं तो कुछ समझ ही नहीं सका, गुरुदेव!" यह रहस्य सरलता से समझ में आने लायक नहीं है। तो क्या गुरुदेव मेरे नाक-कान अब सदा के लिए गए?
'वे तो गए ही, इसमें क्या संदेह?'
'पर भगवान! आपके तो कान-नाक पूर्ववत हो गए हैं। मेरे भी __ पूर्ववत कीजिए न प्रभू!'
'यह कैसे हो सकता है ? सिर काटा होता तो सब अंग मेरे समान __ पूर्ववत हो जाते।'
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