श्रम का अमृत
श्रम का अमृत
चलते-चलते शाम हो गई तो गुरु नानक पास के गाँव में एक निर्धन किसान के यहाँ ठहर गए। उस गाँव के सेठ ने यह सुना कि आज रात्रि को गरु नानक यहीं विश्राम कर रहे हैं तो वह भी उनके दर्शन के लिए गया। उस समय नानक भोजन कर रहे थे।
भोजन में सूखी रोटी और दाल थी। ऐसा रूखा-सूखा भोजन करते नानक को देखा तो उस सेठ को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा"आप ऐसा भोजन क्यों कर रहे हैं? इस गाँव में तो जो भी कोई संत महात्मा आता है वह मेरे यहाँ ही ठहरता है। भगवान की कृपा से मेरे यहाँ किसी भी प्रकार की कमी नहीं है। मेरा आपसे निवेदन है कि आप भी मेरे यहाँ चलकर ही निवास करिए।"
नानक ने बड़ी शांति से उत्तर दिया-"महोदय ! मैं तो श्रम की कमाई से उत्पन्न अमृत खा रहा हूँ। निर्धन व्यक्तियों के शोषण से बने पकवान मुझे पसंद नहीं हैं।"
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