भयंकर भ्रम
भयंकर भ्रम
किसी समुद्र के किनारे वेल और तार के वृक्षो का एक बहुत बडा वन था । उसमे सभी तरह के छोटे-बडे जानवर रहते थे । एक वेल के पेड के पास एक खरगोश __ भी विलकुल अकेला रहता था। वह कवि की तरह दूर दूर की कल्पनाए करने मे बहुत कुशल था, प्राय जागते हुए भी सपने ही देखता था।
एक दिन खरगोश एक ताड के पेड के नीचे आराम से लेटा हुआ आकाग के तारे तोडने मे लगा था । उसकी बुद्धि ससार के एक कोने से दूसरे कोने तक दीड लगा रही थी। ससार की अनेक समस्याग्रो पर विचार करने के बाद वह एक विकट समस्या मे उलझ गया । वह सोचने लगा कि यदि पृथ्वी उलट गई तो क्या होगा ? पृथ्वी के उलटने के भयकर दृश्य उसकी अाग्यो के आगे नाचने लगे। उस भयकर काड की कल्पना ने वह बहुत व्यग्र हो उठा। ठीक उसी समय किनी पेड़ से एक पका बेल दटकर एक ताट के पत्ते पर गिरा । खरगोश ने उसको गिरते नही देखा क्योकि उस समय तो वह आखे मूंदकर दुनिया की दुर्गति की कल्पना मे लगा था। लेकिन उसके गिरने की आवाज़ उसने सुन ली । उस आवाज़ को सुनकर वह चौंक पडा और सोचने लगा कि मालूम होता है, पृथ्वी सचमुच उलट रही है।
बस, फिर क्या था पृथ्वी के उलटने की आशका करके खरगोश वहा से सिर पर पैर रखकर, 'भागो, भागो ।' चिल्लाता हा भागा। रास्ते में एक दूसरे खरगोश ने उसको इस तरह भागते देखकर पूछा, "अरे भाई | क्या हुआ, क्यो भागे जा रहे हो ?"
पहला खरगोश विना रुके यह कहता हुआ भागता ही चला गया, "अरे कुछ न पूछो, दुनिया उलट रही है, भागो, भागो, भागो!"
दूसरा खरगोग भी जान लेकर उसके साथ भागा। रास्ते मे कई खरगोश मिले, सवका यही हाल हया । इस तरह पूरे एक हजार खरगोश एक साथ मिलकर भागने लगे। एक हिरन भी इतने जीवो को भागते देवकर बिना कुछ सोचे-विचारे उनके साथ-साथ भागने लगा । भागने वाले एक-दूसरे से सूनकर यही कहते __ जाते थे, “दुनिया उलट रही है, भागो, भागो!"
इसको जो भी जीव मुनता, वही घबराकर भागने लगता था। जगल के कितने ही मूअर, भैसे, बैल, गैडे, बीते, हाथी ग्रादि दुनिया के उलटने की अफवाह सुनते ही खरगोश के पीछे-पीछे भागने लगे। इस प्रकार सारे जगल मे भगदड़ मच गई। चारो ओर से छोटे-बडे जीव-जन्तु अांख मूदकर भागते ही दिखाई देते थे।
वन के राजा सिह ने सारे जीवो को इस तरह भागते देखकर एक से इसका कारण पूछा । उसने भागने हए वही जवाब दिया, "दुनिया उलट रही है, भागो, भागो, भागो !"
सिंह को यह सुनकर बहुत अाश्चर्य हुआ । उसने ऐसी प्रसंभव वात पर विश्वास नही किया और यह समझ लिया कि सारे जीव भ्रम के गिकार हो गए हैं । वह उन्हे रोकने लगा । लेकिन वहां कीन किसकी सुनता था | तब अपनी-अपनी जान लेकर भागे जा रहे थे । ऐसी दगा मे, बिह ने बडी बुद्धिमानी से आगे बढकर ऐमा घोर गर्जन किया कि सबके सब जीव डर के मारे जहां ले. तहा गडे हो गए । तव वनराज ने एक-एक ने इस सम्बन्ध में अन्न करना शुरू किया। पहले उसने हाथी से पूछा "तुम्हे कसे मालूम हुया कि पृथ्वी उलट रही है ? नया तुमने अपनी ग्रामो ने उगे उलटते देया है ?"
हाथी बोला, "नही महाराज | मैंने स्वय तो नही देखा, लेकिन अमुक चीते के मुह से सुना है कि दुनिया उलट रही है । उन्हे सबके साथ भागते देखकर मैं भी भागने लगा।"
तब सिंह ने उस चीते से वही प्रश्न किया । उसने भी गैडे का नाम लेकर ऐसा ही उत्तर दिया । अन्त मे होते-होते यह पता चला कि एक खरगोश ने दुनिया के उलटने की खबर फैलाई और सब उसीके कथन को सत्य मानकर भागे जा रहे थे । सिंह ने जब उस खरगोश से पूछा तो वह बोला, "हा, हा धर्मावतार, मैं लेटे-लेटे जो सोच रहा था, वही हया । मुझे दुनिया के उलटने की शका पहले ही हो गई थी। मैंने अपने कानो से धडाका-फडाका सुना है । उसीसे मुझे विश्वास हो गया कि दुनिया उलट रही है । दुनिया के उलटने की आवाज़ वडी भयकर थी मेरे राजा । मेरा तो दिल दहल गया । अव कुशल नहीं है।"
___ सिंह उसके मिथ्या भय के रहस्य को समझ गया। सारे जीवो को ढाढस वधाने के लिए उसने इस घटना की सही-सही जाच करने का निश्चय करके कहा, "तुम लोग घबरानो मत,मैं स्वय इसका पता लगाने जाता है।"
यह कहकर वह खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर उस स्थान की ओर चला जहा पृथ्वी के उलटने का शब्द हुया था। खरगोश के निवास स्थान के पास पहचकर सिंह ने उसे उतार दिया और कहा, "अब आगे आगे चलो और मुझे वह स्थान दिखायो जहा से तुम्हें धडाका-फडाका सुनाई पडता था।"
खरगोश गिडगिड़ाता हुआ बोला, “देव वहां जाने मे डर लगता है । कही मैं दुनिया के गड्ढे मे न गिर जाऊ । वही गिरकर तो दुनिया उलटी है।"
सिह ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा, “घबरानो मत, मैं साथ हू । तुम दूर से खडे होकर मुझे वह स्थान दिखा दो।"
खरगोश कुछ दूरी पर जाकर खडा हो गया और बोला, "देखिए, देखिए, स्वामी । वही दुनिया गिरकर उन्नटी है। वही से ऐसा भयकर शब्द हुआ था मानो मारा ब्रह्माण्ड फट गया । ऐमा मालूम हुअा था कि दुनिया वारूद के गोले की तरह दग गई। अभी तक मेरे कानो में आवाज गज रही है।"
सिंह ने आगे बढकर उस स्थान को देखा। वहा ताड़ के पत्ते पर एक पका बेल छितराया पड़ा था। उने देखते ही शेर की समझ में सारी बात या गई। वह सरगोश को पीठ पर बैठाकर उन पशुमो के पानपहुचा जो भय से अधमरे हो गए थे। उनसे उसने सच्ची बात बताकर कहा, "तुम लोगो ने आंखे मूंदकर ऐसी वेसिर-पैर की बात पर कैसे विश्वास कर लिया । अपनी बुद्धि से भी तो कुछ सोचना चाहिए था। अब चलकर देखो कि इस तुच्छ जीव ने किस तरह भयभीत होकर सारे जगल मे भ्रम फैला दिया है।"
वन के जीवो ने सिंह के साथ जाकर जब स्वय सब कुछ देखा-समझा, तव उनकी जान मे जान आई। यदि सिंह समय पर उनके भ्रम को न मिटाता तो वे सभी घबराकर समुद्र मे कूद पडते और मर जाते ।
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