अज्ञात से संदेह असंभव है - ओशो
अज्ञात से संदेह असंभव है - ओशो
अज्ञात से संदेह असंभव ही है। आप अज्ञात को प्रेम भी कैसे कर सकते हैं? आप ज्ञात को ही प्रेम कर सकते हैं। आप अज्ञात को प्रेम नहीं कर सकते; आप अज्ञात से कोई संबंध स्थापित नहीं कर सकते। यह संबंध असंभव है। आप उससे संबंधित नहीं हो सकती हैं; आप उसमें घुलमिल सकते हैं-वह दूसरी बात है; परन्तु आप उससे संबंधित नहीं हो सकते।
आप उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं, पर संबंधित नहीं। और समर्पण संबंध नहीं है। वह संबंध जरा भी नहीं है। वह तो मात्र दो का, द्वैत का घुलमिल जाना है। अतएव बुद्धि के साथ द्वैत होता है। आप दूसरे के साथ संघर्ष रत होते हैं। परन्तु स्वरूप के साथ द्वैत तिरोहित हो जाता है। न तो आप संघर्ष में होते हैं और न प्रेम में आप जरा भी जुड़े नहीं होते। इस तीसरे को परंपरा के अनुसार श्रद्धा, फेथ कहते हैं। और जहां तक अज्ञात का संबंध है, श्रद्धा ही कुंजी है। यदि कोई कहता है, मैं कैसे विश्वास करूं? तब वह समझ नहीं रहा है। तब वह फिर बिंदु को चूक रहा है। श्रद्धा विश्वास फिर एक बुद्धिगत बात है। आप विश्वास कर सकते हैं, आप विश्वास नहीं भी कर सकते हैं। आप विश्वास कर सकते हैं, क्योंकि आपके पास विश्वास करने के लिए तर्क हैं। आप विश्वास नहीं भी कर सकते हैं, क्योंकि आपके पास अविश्वास करने के लिए तर्क है। विश्वास तर्क से ज्यादा गहन कभी नहीं है। इसलिए आस्तिक, नास्तिक, विश्वास ही उथली सतह के लोग हैं।
श्रद्धा विश्वास नहीं है, क्योंकि अज्ञात के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है, जो कि पक्ष अथवा विपक्ष में हो। न तो आप विश्वास कर सकते हैं, और न अविश्वास कर सकते हैं। तो फिर क्या करने के लिए बाकी रहा? या तो आप उसके प्रति खुले हो सकते हैं या बंद रह सकते हैं। यह विश्वास अथवा अविश्वास का प्रश्न ही नहीं है। यह केवल उसके प्रति खुले अथवा बंद रहने का प्रश्न है। यदि तुम्हें श्रद्धा है, तो तुम खुले हो। यदि तुम्हें श्रद्धा नहीं है, तो तुम बंद रहते हो। यह तो मात्र एक कुंजी है। यदि आप अज्ञात के प्रति खुलना तो आपको श्रद्धा होनी चाहिए। यदि आप उसके प्रति खुले, रहना नहीं चाहते, तो आप बंद रह सकते हैं; परन्तु कोई भी आपके अलावा नहीं चूक रहा है। कोई भी इससे नुकसान को प्राप्त नहीं हुआ सिवा आपके। आप ही बंद रह गए एक बीज की भांति।
एक बीज को टूटना होता है-मरना होता है। केवल तभी वृक्ष पैदा होता है। परन्तु बीज ने वृक्ष को कभी भी नहीं जाना। बीज की मृत्यु केवल श्रद्धा में ही हो सकती है। वृक्ष अज्ञात है और बीज कभी भी वृक्ष से नहीं मिल पाएगा। बीज भय के कारण, मृत्यु के भय के कारण बंद रह सकता है। तब बीज बीज ही रह जाएगा और आखिर में मर जाएगा, बिना दुबारा जन्मे। लेकिन यदि बीज श्रद्धापूर्वक मर जाए, ताकि अज्ञात उसकी मृत्यु में से जन्म ले सके, तभी केवल वह खुल सकता है। एक तरह से वह मर जाता है, परन्तु एक तरह से वह दुबारा जन्म पाता है-बहुत बड़े रहस्यों में। जन्म पाता है ऊंचे जीवन में। यह घटना श्रद्धा में घटती है। इसलिए यह विश्वास नहीं है। इसे कभी भी विश्वास समझने की नासमझी न करें। यह भावना भी नहीं है। यह दोनों से ज्यादा गहरी है। यह आपकी समग्रता है।
-ओशो
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