ज्योतिष से जानिए अद्भुत शीतल ग्रह चंद्र के स्वभाव के बारे में
ज्योतिष से जानिए अद्भुत शीतल ग्रह चंद्र के स्वभाव के बारे में
चंद्र ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि के नेत्र जल से उत्पन्न हुआ है, प्रजापति दक्ष की सत्ताइस कन्याओं का पति है तथा एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र अनुसया के तीन पत्रों में से एक है। वैसे तो चंद्र एक उपग्रह है. किन्त ज्योतिषशास्त्र में उसे एक ग्रह की श्रेणी में ही रखा गया है। सूर्य तथा बुध उसके अच्छे मित्रों में हैं और राहु व केतु उसके पक्के शत्रु हैं, जबकि शुक्र, मंगल और शनि उसके साथ न तो किसी प्रकार की मित्रता ही रखते हैं और न ही किसी प्रकार से उसके शत्रु ही हैं। चंद्र के साथ वो सदैव समभाव रखते हैं।चंद्र वृष राशि में उच्च का तथा वृश्चिक राशि में नीच का होता है। इसकी स्वराशि कर्क है। कुंडली के चौथे घर का इसे कारक माना गया है, किन्तु बली चंद्र ही चौथे घर में अपना श्रेष्ट फल प्रदान करता है। यदि चंद्र चौथे घर में जन्मांग चक्र में पड़ा हो और निर्बल हो अथवा राहु के साथ मिलकर ग्रहण योग बना रहा हो तो ऐसी दशा में, चौथे घर में होते हुए भी यह अपना पूर्ण फल कभी नहीं देगा।
चंद्र अपने स्थान से सातवें घर को पूरी दृष्टि से देखता है। विंशोत्तरी दशा के अनुसार इसकी महादशा १० वर्ष की होती है। कुंडली में चंद्र की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह बहुत शीघ्र अपनी गति बदलता है और जातक को तुरंत लाभ-हानि पहुंचाने की क्षमता रखता है। यह मन और तत्त्वसंबंधी कार्य, सुगंधित द्रव्य, पानी, माता, आदर-सम्मान, संपन्नता, एकांतप्रियता, सर्दी, जुकाम, चर्मरोग और हदयरोग का कारक होता है। बृहस्पति के साथ यह उच्च फल देता है, किन्तु सूर्य और बुध के साथ भी यह योग बनाने में समर्थ होता है। प्रश्न कुंडली में संपूर्ण विचार इसी के द्वारा किया जाता है। यात्रा, विवाह और शुभकार्यों के लिए इसका विशेष अध्ययन आवश्यक होता है।
यदि किसी की कंडली में जन्म लग्न (मेष, वृष तथा कर्क राशि हो तो) में चंद्रमा हो तो वह जातक धनवान, कांतिमान् तथा पूर्ण आनंद का भागी होता है। यदि लग्न में (मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, धनु, मकर, कुंभ और मीन)जातक स्थूल शरीर का एवं गायन विद्या का विशेष प्रेमी होता है।
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