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    सभ्यता के विकास के साथ दो तरह की बातें विकसित हुईं हैं, पाखंड और पागलपन - ओशो

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    सभ्यता के विकास के साथ दो तरह की बातें विकसित हुईं हैं, पाखंड और पागलपन - ओशो 

    दमित, सप्रेस्ड माइंड, चीजों को सिर पर तो नहीं लेता लेकिन फिर भी वे उसके सिर पर चढ़ जाती हैं और जीवन भर उसके साथ चलती हैं। उन्हें उतारना कठिन हो जाता है। क्योंकि जिसे हम दबाते हैं वह नष्ट नहीं होता वह हमारे भीतर छुप जाता है। हम जितना दबाते हैं वह हमारे भीतर और ज्यादा गहरे छुप जाता है। हम सत्य बोलने का व्रत लेते हैं और भीतर असत्य छिप के बैठ जाता है। हम ईमानदार होने की कसम खाते हैं और भीतर बेईमानी धक्के देती है। मनुष्य दो हिस्सों में टूट जाता है। एक जैसा वह दिखाई पड़ता है और एक जैसा वह है। और यह जीवन भर का संघर्ष। यह जीवन भर की पीड़ा नरक बना देती है।

    अब इसमें दो ही रास्ते हैं अगर वह आदमी बहुत चालाक है, समझदार है, तो एक रास्ता पाखंड है। और वह रास्ता यह है कि वह ऊपर से तो जो दिखाई पड़ता है दिखता रहे और भीतर जो है छुपे रास्तों से उसकी तृप्ति का भी मार्ग खोज ले।

    एक रास्ता तो यह है। और इसीलिए नैतिक शिक्षा का अनिवार्य परिणाम पाखंड हुआ है। सारी दुनिया और मनुष्य जाति पाखंडी हो गई है। उसको पाखंडी बनाने में नैतिक शिक्षा का हाथ है। जो यह सिखाती है कि सच बोलो बेइमानी मत करो। झूठ मत बोलो। क्रोध मत करो। वासना मत लाओ। जो हर चीज में इंकार सिखाती है, उसका परिणाम यह होगा कि आदमी दमन करेगा और दमन इतने परेशान कर देगा उसे कि वह छुपे रास्तों से प्रवेश करना चाहेगा। पाखंड पैदा होगा। और वह अगर जिद्दी हुआ और पाखंडी नहीं बना तो दूसरा विकल्प है कि वह पागल हो जाएगा। क्योंकि इतना टेंशन और इतना तनाव झेलना कठिन है। उस तनाव में, चिंता में, संताप में, वह टूट जाएगा और विक्षिप्त हो जाएगा।

    इसलिए सभ्यता के विकास के साथ दो तरह की बातें विकसित हुईं हैं। पाखंड और पागलपन। क्या आपको पता है जितने हम सभ्य होते गए हैं उतनी ही हमारी संख्या पागलों की बढ़ती चली गई है। क्या आपको पता है जितने हम शिक्षित होते गए हैं उतने ही हमें पागलखाने बढ़ाने पड़ रहे हैं।

     - ओशो 

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