शक्ति का रूपांतरण - ओशो
शक्ति का रूपांतरण - ओशो
नैतिकता धर्म तक नहीं ले जाती लेकिन धर्म जरूर नैतिकता को ले आता है। धर्म की सुगंध है नीति। अनिवार्य सुगंध है। भीतर धर्म का फूल खिलता है जीवन में आचरण में सुगंध फैल जाती है। तब क्रोध को मिटाना नहीं पड़ता, क्रोध पाया ही नहीं जाता है और जो क्रोध से जो इनर्जी और जो ताकत और जो शक्ति प्रकट होती थी, वही शक्ति प्रेम से प्रकट होने लगती है। और जो सेक्स था वही शक्ति ब्रह्मचर्य बन जाती है। सेक्स को दबाने से नहीं बल्कि स्वयं को जानने से। जीवन रूपांतरित होता है। ट्रांसफारमेशन हो जाता है।एक आदमी अपने घर के बाहर खाद के ढेर लगा ले तो उस घर में रहना मुश्किल हो जाएगा, उस घर में दुर्गंध भर जाएगी। उस घर के पास से निकलना मुश्किल हो जाएगा। उस घर के वासी बहुत कठिनाई में पड़ जाएंगे। वह घर नरक हो जाएगा। लेकिन अगर वही आदमी उस खाद को अपनी बगिया में डाल दे और बीज बो दे तो उस घर में फूल खिल जाएंगे, उस घर में सुगंध फैल जाएगी। उसके रास्तों से निकलने वालों को भी सुगंध का फायदा मिलेगा।
यह सुगंध क्या है? यह वही दुर्गंध है जो खाद में छिपी थी। वही रूपांतरित हो कर पौधों में जा कर सुगंध बन गई है। प्रेम क्या है? वही जो क्रोध था। और ब्रह्मचर्य क्या है? वही जो सेक्स था। ये दुश्मन नहीं हैं एक दूसरे के ये उन्हीं शक्तियों के रूपांतरण है। वे ही शक्तियां परिवर्तित हो जाती हैं। इसलिए अगर आपके भीतर क्रोध है तो आप धन्य हैं। क्योंकि आपके भीतर ताकत है और प्रेम का जन्म हो सकता है। और अगर आपके भीतर सेक्स है तो आप धन्य हैं। क्योंकि वही ताकत ब्रह्मचर्य बन सकती है। वही ताकत परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग बन सकती है।
इसलिए दुखी न हों और आत्म-निंदा न करें कि मेरे भीतर क्रोध है काम है फलां है, ढिका है। आत्म निंदा न करें यह नैतिकता आत्म निंदा सिखाती है। सेल्फ कंडेमनेशन सिखाती है। और जो आदमी खुद की निंदा करने लगता है जो आदमी अपनी ही आंखों में गिर जाता है, उस आदमी के विकास के सब द्वार बंद हो गए। उस आदमी का उर्ध्वगमन बंद हो गया, अब वह ऊपर नहीं जाएगा। अब उसकी नीचे की यात्रा शुरू हो गई। वह जितना अपने की निंदा करेगा उतना ही नीचे गिरता जाएगा और नीचे गिरता जाएगा।
इसलिए जिन कौमों ने बहुत नैतिकता की बातें की हैं उनका आदमी एकदम कुरूप हो गया है। एकदम अग्लि हो गया है। जिन कौमों ने नैतिकता की बहुत बातें की हैं उनका आदमी दीन-हीन हो गया। उसके चित्त में बड़ी ग्लानि, आत्म ग्लानि पैदा हो गई है। उसके भीतर वह गौरव और गरिमा नष्ट हो गई है क्योंकि सब पाप ही पाप उसको दिखाई पड़ता है। क्रोध, ईमान नहीं है, बेईमानी है, चोरी है यह सब क्या है? उसको सब भीतर खोजता है तो पाप ही पाप दिखाई पड़ता है। और इस पाप ही पाप में वह दबा जाता है टूटा जाता है। नष्ट हुआ जाता है।
इस ग्लानि को छोड़ दें। यह ग्लानि बहुत अशुभ है। यह जीवन की शक्तियां हैं जिनकी आप निंदा कर रहें हैं। यह शक्तियां आज जिस रूप में प्रकट हो रहीं हैं वह रूप जरूर शुभ नहीं है। लेकिन यही शक्तियां दूसरे रूप में प्रकट हो सकती हैं और वह रूप बहुत शुभ हो सकता है। उसकी बदलाहट का रास्ता सीधी लड़ाई नहीं है। उसके बदलाहट का रास्ता बहुत भिन्न है।
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