इच्छाओं का दमन - ओशो
इच्छाओं का दमन - ओशो
एक छोटी सी पहाड़ी नदी को दो भिक्षु पार कर रहे थे। एक वृद्ध भिक्षु था और एक युवा। वृद्ध भिक्षु जैसे ही नदी के किनारे आया उसने देखा कि सांझ होने को है, सूरज ढलने को है। पहाड़ी नदी है। और एक युवती नदी के किनारे खड़ी है, संभवतः उसे नदी पार होना है। लेकिन अकेले नदी में उतरने का साहस नहीं कर पा रही है। सहज ही उसके मन को ख्याल हुआ इसे हाथ का सहारा दे दूं और नदी पार करा दूं। लेकिन तीस वर्ष से उसने किसी स्त्री को छुआ नहीं था।यह ख्याल आते ही कि मैं हाथ का सहारा दे कर नदी पार करा दूं। वह हैरान हो गया तीस साल से सोचता था कि जिस काम के ऊपर उसने वश पा लिया। जिस सेक्स को उसने जीत लिया, वह अत्यंत तीव्रता से उसके भीतर खड़ा हो गया। वह घबड़ाया, उसके हाथ पैर कंप गए, अभी उसने उस स्त्री को छुआ नहीं था। उसने आंखें झुका ली और वह नदी पार करने लगा और वह भगवान का नाम जपने लगा और सोचने लगा मैं भी कैसा नासमझ हूं। मैंने यह व्यर्थ की बात क्यों सोची? लेकिन दोनों बातें आने लगी मन में एक तरफ से ख्याल आने लगा उसे पार मैं करा ही देता तो क्या हर्ज था? और उसके पार कराने के साथ न मालूम कितना रस? और न मालूम कितनी कामनाएं उसके मन में उठने लगी और कितने सपने उसके मन में उठने लगे? आंख तो उसने मोड़ ली थी लेकिन आंख मोड़ने से कहीं कुछ होता है? वह स्त्री इतनी सुंदर न थी जितनी आंख मोड़ने से और सुंदर मालूम होने लगी। आंख उसने बंद कर ली थी, वह राम जप रहा था और नदी पार हो रहा था लेकिन भीतर कोई राम नहीं थे वही स्त्री खड़ी थी और बहुत सुंदर हो कर खड़ी हो गई थी। बंद आंखों में चीजें और सुंदर हो आती हैं। खुली आंखों से चीजें इतनी सुंदर कभी भी नहीं हैं। क्योंकि बंद आंखों में चीजें पार्थिव नहीं रह जाती अपार्थिव हो जाती हैं सपना बन जाती हैं।
वह बहुत घबड़ाया और बहुत बेचैन हुआ, अपनी बहुत निंदा उसने की कि मैंने ये ही क्यों? प्रायश्चित करूंगा, दुखी होऊंगा। तीस वर्ष से जिसे मैंने छोड़ रखा था, अलग कर रखा था। वह मौजूद था, अलग तो हुआ नहीं था। वह नदी पार हो गया। लेकिन नदी पार होते ही उसे ख्याल आया कि जो भूल मैंने की है कहीं मेरा युवा साथी भी वही भूल तो नहीं कर रहा। वह उसके थोड़े पीछे आने को था। उसने लौट कर देखा वह हैरान रह गया। वह युवा लड़का उस लड़की को अपने कंधे पर बिठा कर नदी पार कर रहा था।
उसे कई तरह के भाव एक साथ उठ आए। कहीं ईर्ष्या भी आ गई होगी। क्योंकि वह चूक गया था इस सुख को उठाने से। वह वंचित रह गया था इस आनंद से और तब निंदा भी आई। और तब उसने सोचा कि आज जा कर गुरु को कहेंगे और यह तो बात बहुत गलत है। यह तो पापपूर्ण है कि संन्यासी और युवा युवती को कंधे पर उठाए। वह गुस्से में चल पड़ा। कोई दो मील के बाद उनका आश्रम था। थोड़ी देर बाद जब वे आश्रम पहुंच गए तो वह बूढ़ा सीढ़ियों पर खड़ा था।
पीछे से आते युवक को उसने कहा कि सुनो यह बात बरदाश्त के बाहर है यह निहायत पाप है कि तुम लड़की को कंधे पर उठाओ। और मैं असत्य न बोल सकूँगा मुझे गुरु से कहना पड़ेगा कि यह बात मेरी आंखों के सामने हुई है और यह हमारे आश्रम जीवन के विरुद्ध है। हमने ब्रह्मचर्य की कसम ली है और तुमने युवती को छुआ। न केवल छुआ बल्कि कंधे पर उठाया। वह युवक हंसने लगा और उसने कहा कि वृद्ध भिक्षु, मैं तो उस युवती को नदी के किनारे उतार भी आया कंधे से लेकिन आप अभी भी लिए हुए हैं।
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