• Latest Posts

    नीति का संबंध है आचरण से, धर्म का संबंध है अंत:करण से - ओशो

    Policy-is-related-to-conduct-religion-is-related-to-conscience---Osho

    नीति का संबंध है आचरण से, धर्म का संबंध है अंत:करण से - ओशो 

    निरंतर हमसे कहा जाता है कि आदमी को नैतिक होना चाहिए, मारल होना चाहिए। यह शिक्षा बहुत पुरानी है। यह कोई आज तो नहीं कहा जा रहा है, यह हमेशा से कहा जा रहा है फिर आदमी नैतिक क्यों नहीं हो गया? तो हम दोष देते हैं कि आदमी की कोई गलती है इसलिए नैतिक नहीं हो गया।

    मैं आपसे कहना चाहता हूं कि कोई आदमी नैतिक हो ही नहीं सकता बिना धार्मिक हुए। और धार्मिक होना बड़ी दूसरी बात है। कोई आदमी नैतिक नहीं हो सकता बिना धार्मिक हुए। लेकिन हमको तो बताया जाता रहा है कि नैतिक हो जाइए तो फिर आप धार्मिक हो सकते हैं, बिना नैतिक हुए धार्मिक नहीं हो सकते। यह बात बिलकुल ही उल्टी और गलत है। नैतिकता धार्मिक मनुष्य की सुगंध है।

    भीतर चित्त में धर्म हो तो जीवन में होती है नीति। अंत:करण परिवर्तित हो जाए तो आचरण हो जाता है दूसरा। नीति का संबंध है आचरण से, धर्म का संबंध है अंत:करण से। लेकिन पांच हजार वर्षों से हम कह रहे हैं आदमी को नैतिक बन जाने को और बिना अंत:करण बदले हुए जो आदमी अपने आचरण को बदल लेता है वह नैतिक तो नहीं होता विकृत जरूर हो जाता है।

    क्या मतलब मेरा यह कहने का? मेरा कहने का यह मतलब है कि जो आदमी अपने जीवन को नैतिक बनाने में लगता है वह क्या करेगा? अगर उसके भीतर सेक्स है काम है जो कि होना चाहिए और है। उसके जीवन का स्वभाव का हिस्सा है। तो वह क्या करेगा नैतिक बनने को? वह आदमी ब्रह्मचर्य की कसमे लेगा नैतिक बनने को।

    ब्रह्मचर्य की कसमों से क्या होने वाला है? इतना ही होने वाला है कि वह आदमी अपने सेक्स को भीतर दबाए चला जाएगा, दबाए चला जाएगा। ऊपर से ब्रह्मचर्य को ओढ़ लेगा और भीतर सेक्स को दबा लेगा, सप्रेस कर लेगा। वह दबी हुई कामुकता, वह दबा हुआ सेक्स नष्ट नहीं होगा उसके भीतर उसके अचेतन मन की पर्तों में घूमने लगेगा। रात सपनों में आने लगेगा। कमजोर क्षणों में प्रकट होने लगेगा। वह उसके भीतर निरंतर मौजूद रहेगा और उसकी मौजूदगी उसको भयभीत कर देगी। वह घबड़ाया हुआ रहने लगेगा उसको अगर कहीं अगर स्त्री दिख जाए तो वह घबड़ाएगा वह आंख बंद कर लेगा। वह दूर भागेगा, जंगलों में जाएगा, बस्तियां छोड़ेगा क्योंकि भीतर भय है कि कहीं उसका ब्रह्मचर्य न टूट जाए। और ब्रह्मचर्य टूट जाने का भय क्यों है? भय है कि भीतर सेक्स की लहरें धक्के दे रही हैं। उनको वह ऊपर से दबाए हुए बैठा हुआ है।

     - ओशो 

    1 comment: