नैतिकता धर्म के पीछे आती है अपने आप - ओशो
नैतिकता धर्म के पीछे आती है अपने आप - ओशो
बुद्ध एक बार एक गांव के पास से निकलते थे। उस गांव के लोग उनके शत्रु थे। हमेशा ही जो भले लोग हैं, उनके हम शत्रु रहें हैं। उस गांव के लोग भी हमारे जैसे लोग होंगे। तो वे बुद्ध के शत्रु थे। बुद्ध उस गांव से निकले तो उन गांव के लोगों ने रास्ते पर उसे घेर लिया। और उन्हें बहुत गालियां दी और बहुत अपमान किया। बहुत अपशब्द बोले। बुद्ध ने सुना और बुद्ध ने फिर उनसे कहा मेरे मित्रो तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो मैं जाऊं मुझे दूसरे गांव जल्दी पहुंचना है।वे लोग थोड़े हैरान हुए होंगे। और उन्होंने कहा कि हमने क्या कोई बातें कहीं हैं? हमने तो गालियां दी हैं सीधी और स्पष्ट। बुद्ध ने कहा तुमने थोड़ी देर कर दी। अगर तुम दस वर्ष पहले आए होते तो मजा आ गया होता। हम भी तुम्हें गालियां देते हम भी क्रोधित होते। थोड़ा रस आता बातचीत होती तुम थोड़ी देर कर के आए हो। अब मैं उस जगह हैं कि तुम्हारी गाली लेने में असमर्थ ह। तुमने गाली दी वह तो ठीक लेकिन तुम्हारे देने से ही क्या होता है? मुझे भी तो भागीदार होना चाहिए। मैं उसे लूं तभी तो उसका परिणाम हो सकता है। लेकिन मैं तुम्हारी गाली लेता नहीं। क्योंकि कोई पागल ही गाली ले सकता है कोई समझदार गाली कैसे लेगा? मैं दूसरे गांव से निकला था वहां के लोग मिठाइयां लाए थे भेंट करने, मैंने उनसे कहा कि मेरा पेट भरा है तो वे मिठाइयां वापस ले गए। जब मैं न लंगा तो वे मझे कैसे दे जाएंगे? बद्ध ने उन लोगों से पछा कि वे लोग मिठाइयां ले गए उन्होंने क्या किया होगा? एक आदमी ने भीड़ में से कहा कि उन्होंने अपने बच्चों को बांट दिए होंगे परिवार में दे दिए होंगे। बुद्ध ने कहा मित्रो अब तुम बड़ी मुश्किल में पड़ गए तुम गालियां लाए हो मैं लेता नहीं। अब तुम क्या करोगे? घर ले जाओगे, बाटोगे? मुझे तुम पर बड़ी दया आती है, अब तुम इन गालियों का क्या करोगे? क्योंकि मैं लेता नहीं। क्योंकि जिसकी आंख खुली है वह गाली लेगा? और जब मैं लेता ही नहीं तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। जब मैं ले लूं तब क्रोध उठ सकता है।
आंखें रहते हुए मैं कैसे कांटों पर चलूं? और आंखें रहते हुए मैं कैसे गालियां लूं? और होश रहते मैं कैसे क्रोधित हो जाऊं? मैं बड़ी मुश्किल में हूं। मुझे क्षमा कर दो। तुम गलत आदमी के पास आ गए। मैं जाऊं मुझे दूसरे गांव जाना है। उस गांव के लोग कैसे निराश नहीं हो गए होंगे? कैसे उदास नहीं हो गए होंगे?
बुद्ध ने क्या कहा..... ये बुद्ध ने क्रोध को दबाया नहीं है। ये बुद्ध भीतर जाग गया है इसलिए क्रोध अब नहीं है।
भीतर आत्मा जाने और जागे तो नीति तो वैसे ही चली आती है जैसे आदमी के पीछे छाया आती है। आदमी के पीछे छाया आती है। वैसे ही नैतिकता धर्म के पीछे आती है अपने आप, अनिवार्य। वो तो अपरिहार्य है वह तो आएगी। उसे लाने का कोई सवाल नहीं है। इधर हम हजारों वर्ष से आदमी को नैतिक लगाने के लिए समझा रहें हैं इसलिए नैतिकता नहीं आ पाई। आया है पाखंड, आया है पागलपन।
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