• Latest Posts

    ज्योतिष से जानिए दुर्घटना व शोक के ग्रह केतु के स्वभाव के बारे में


    ज्योतिष से जानिए दुर्घटना व शोक के ग्रह केतु के स्वभाव के बारे में 

    केतु का पौराणिक दृष्टिकोण केवल यही है कि समुद्र-मंथन के समय राहु ने देवरूप धारण कर अमृतपान किया और फलस्वरूप विष्णु जी ने अपने चक्र से उसका सिर काट डाला। किन्तु अमृत पीने के कारण राहु का शरीर जीवित रहा। उसी समय से धड़ का ऊपरी भाग और गरदन से नीचे का भाग केतु के नाम से विख्यात् हुआ।

    केतु अत्यंत बलवान् और मोक्षप्रद माना जाता है। मेष राशि का यह स्वामी है। इसका विशेषाधिकार पैरों के तलवों पर रहता है। यह नपुंसकलिंगी और तामस स्वभाव का है। इसका उच्च स्थान मेष और नीच स्थान वृश्चिक है। यह बृहस्पति के साथ सात्त्विक तथा चंद्र एवं सूर्य के साथ शत्रुवत् व्यवहार करता है, तथा अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है।

    कुंडली में यह सदैव राहु से सातवें स्थान पर रहता है। इसकी विंशोत्तरी दशा सात वर्ष की मानी गई है। केतु की मित्र राशियां मिथुन, कन्या, धनु, मकर और मीन हैं तथा शत्रु कर्क, सिंह राशियां हैं। जातक की कुंडली में विभिन्न स्थितियों के अनुसार केतु ग्रह से भयानक एवं अद्भुत स्वप्न दर्शन, दुर्घटना तथा मृत्यु के शोक आदि का विचार किया जाता है।

    केतु एक क्रूर ग्रह है। त्वचीय रोग आदि का कारक भी यही ग्रह है। इसकी दशा में जातक को अचानक द्रव्य-प्राप्ति होती है। पुत्र एवं स्त्री लाभ होता है तथा साधारण रूप से आय बढ़ती है। नीच केतु की दशा में जातक कष्ट उठाता है तथा बंधुओं का विरोध सहने को विवश करता है। व्यसनों से वो स्वयं को दूसरों की दृष्टि में गिराता है। नवीन कार्यों के शुभारंभ करने से उसे असफलता का मुंह दखना पड़ता है। स्त्री से हानि और व्यापार से लाभ पहुंचता है।

    No comments