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    ज्योतिष से जानिए मंगल के अनिष्ट प्रभाव के निवारण के उपाय

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    ज्योतिष से जानिए मंगल के अनिष्ट प्रभाव के निवारण के उपाय 

    मंगल के बारे में यह माना जाता है कि यह मेष लग्न वाले जातकों की आयु का पूर्ण प्रतिनिधि होता है, क्योंकि उसका पहला और आठवां दो आयु स्थानों पर आधिपत्य हो जाता है। ऐसा मंगल यदि शनि आदि पापी ग्रहों के प्रभाव में हो तो यह आयु की अल्पता का द्योतक होता है। ऐसी हालत में आय बढ़ाने के लिए मंगल को बलवान् करना आवश्यक हो जाता है। "

    मंगल को बलवान् करने के लिए, मंगल का रत्न मूंगा धारण करना चाहिए और शनि आदि जो पाप ग्रह मंगल पर प्रभाव डाल रहे हों, उनके मंत्र का जाप आदि कराकर, उनकी शांति करनी चाहिए। यदि वृश्चिक लग्न में चन्द्र मौजूद हो तो मंगल पूरी तरह से रक्त का प्रतिनिधि होता है। ऐसी हालत में अगर मंगल पर शनि और राहु का प्रभाव हो तो समझ लेना चाहिए कि जातक के रक्त में मलिनता आदि दोष पैदा होंगे।

    रक्त की सफाई के लिए मंगल का बलवान् होना बहुत जरूरी है और इसके लिए चाँदी की अंगूठी में मूंगा लगवाकर पहना जा सकता है। शनि और राहु की शांति का उपाय वैदिक या धार्मिक रीति से करना चाहिए।
    यदि मंगल लग्नेश (लग्न का स्वामी) होकर अथवा वैसे ही छह, आठ या बारहवें घर में स्थित हो और उस पर सिर्फ पापी दृष्टि हो और किसी शुभ ग्रह की युति अथवा दृष्टि का प्रभाव इस पर न हो तो जातक के पट्टे सूख जाते हैं और किसी भी औषधि से यह रोग दूर नहीं होता। इसके लिए चाँदी की अंगूठी में मूंगा पहनना चाहिए। यह उपाय रोग को दूर करने में सक्षम होता है। यदि मंगल का युति अथवा दृष्टि संबंध पहला घर और उसका मालिक, चौथा घर और उसका मालिक तथा चंद्र से हो तो ऐसे जातक का मन अतीव हिंसक होगा। अतः ऐसे मंगल की शांति हनुमान जी के स्रोत्र पाठ आदि के द्वारा की जानी चाहिए।

    . जब मंगल पहले घर का मालिक होकर चौथे घर में नीच का हो तो जातक को छाती आदि के रोग प्रदान करता है तथा धन का नाश भी संभव है। इसके लिए भी चाँदी की अंगूठी में मूंगा लगवाकर पहनना लाभदायक रहता है। इस प्रक्रिया से उम्र, सेहत और दौलत का कभी नाश नहीं होता अथवा इन तीनों में फायदा ही फायदा होता है।

    यदि मंगल और केतु का मिलाप या उनकी दृष्टि का प्रभाव पांचवें घर और उसके स्वामी और बहस्पति पर हो तो जातक के पुत्रों की मौत या उनके अभाव का कारण बनता है और यदि पांचवें घर का स्वामी बलवान् होकर पीड़ित हो तो पुत्रों की मृत्यु तक संभव हो जाती है। पुत्र-मरण के दोष को दूर करने के लिए जहाँ पांचवें घर के मालिक (स्वामी) को रत्न आदि धारण करने से बलवान् करना अभीष्ट होगा, वहाँ मंगल के उपाय के लिए श्री हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जानी चाहिए।

    सातवां घर पुरुष की जन्मकुंडली में स्त्री का और स्त्री की कुंडली में पुरुष का होता है। पुरुष के सातवें घर का कारक अर्थात् स्त्री का कारक शुक्र होता है और स्त्री के सातवें घर का कारक अर्थात् पति का कारक बृहस्पति होता है। जब सातवां घर, उसका मालिक और शुक्र पीड़ित हों तो पुरुष की स्त्री (पत्नी) की मृत्यु का योग बनता है और जब स्त्री की कुंडली में सातवां घर, सातवें घर का मालिक और बृहस्पति पीड़ित हों तो उसके पति की अल्पायु होकर, उसके लिए वैधव्य (विधवा) योग बनता है।

    चूंकि किसी के भी जीवन को खत्म कर देने में मंगल को महारथ हासिल है इसलिए ज्योतिष के आचार्यों ने प्रत्येक उस स्थिति को जिसमें मंगल का प्रभाव जीवन-साथी की आयु को कम करने वाला हो, अनिष्टकारी माना है। मांगलिक एक ऐसी ही स्थिति है, जिसमें मंगल पुरुष अथवा स्त्री के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें-इन पांच घरों में से किसी घर में स्थित हो तो वह मांगलिक योग बनाता है। पहले घर यानी लग्न में हो तो अपनी पूरी सातवीं दृष्टि से सातवें घर पर अपनी मारणात्मक क्रूर दृष्टि डालेगा। यदि चौथे घर में हुआ तो अपनी चौथी दृष्टि से सातवें घर को देखेगा। यदि सातवें में हआ तो सीधा उस घर को अपनी स्थिति से पीड़ित करेगा।

    इसी प्रकार यदि मंगल आठवें में हुआ तो उसकी पूरी सातवीं दृष्टि दूसरे घर पर पड़ेगी जिसकी वजह से दूसरा घर पीड़ित होगा और चूंकि दूसरा घर सातवें से आठवां है अर्थात् जीवन-साथी की आयु का स्थान है, इस पर भी मंगल की दृष्टि वैसे ही जीवन-साथी की आयु के लिए हानिकारक होगी, जैसे कि उसकी दृष्टि सातवें घर पर पड़ेगी। इसलिए उपर्युक्त पांच भावों में मंगल मांगलिक योग अथवा कुजदोष उत्पन्न करता है।

    यह योग प्रायः जीवन-साथी (पुरुष अथवा स्त्री जैसा भी हो) की आयु के हरण करने का योग है। किन्तु इतना ध्यान रहे कि यह कोई जरूरी नहीं कि जब भी मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें अथवा बारहवें घर में हो तो वह अवश्य स्त्री अथवा पुरुष, जीवन-साथी को मारेगा ही। हो सकता है कि १०४ सातवें घर पर मंगल का प्रभाव हो, किन्तु सातवें घर का मालिक ग्रह और शुक्र (पुरुष की कुंडली में) अथवा सातवें घर का मालिक ग्रह और बृहस्पति स्त्री की कुंडली में बलवान् हो तो ऐसी स्थिति में जीवन-साथी की आयु में बहुत थोड़ी कमी जाएगी और वो जीवन लम्बा ही रहेगा।

    मंगल भी जब सातवें घर में हो अथवा उसको देखता हो तो प्रत्येक अवस्था में सातवें घर को एक जैसा नुकसान नहीं पहुंचाता। जैसे स्वक्षेत्री अथवा उच्च मंगल सातवें घर में पति अथवा पत्नी के लिए नुकसानदेह नहीं है। जब मंगल के ऊपर शनि तथा राहु आदि ग्रहों का प्रभाव हो और वह नीच राशि में स्थित हो तो मंगल निर्बल हो जाता है। ऐसी हालत में भी उसकी दृष्टि यदि सातवें घर पर है तो उस दृष्टि में बल न होगा। परिणामस्वरूप सातवें घर को कम नुकसान होगा और मांगलिक योग नाममात्र का मांगलिक योग रह जाएगा।

    यदि मंगल का प्रबल प्रभाव सातवें घर पर पड़ रहा हो और विशेषतया उसकी युति अथवा दृष्टि का प्रभाव सातवें घर के मालिक और दूसरे घर के मालिक तथा कारक ग्रह (सत्री की कुंडली बृहस्पति और पुरुष की कुंडली में शुक्र) पर पड़ रहा हो तो मंगल का उपाय अवश्य ही करवाना चाहिए अर्थात् मंगल की पूजा, मंगल के देवता हनुमानजी की पूजा, मंगलवार का व्रत, मंगल के मंत्र का जाप तथा दान आदि करवाना चाहिए।

    यह देखने में आए कि मंगल अपने प्रभाव से अनिष्ट की उत्पत्ति कर रहा है, तो इस दशा में मंगल को जितना बलवान् किया जाएगा, उतना ही वो और अधिक अनिष्टकारी बनता चला जाएगा। अत: जिस कुंडली में मांगलिक योग बनता हो, उसके जातक को मंगा कभी नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल और केत की तथा इनके द्वारा अधिष्ठित राशि के स्वामी (मालिक) की आठवें अथवा उसके स्वामी पर दृष्टि आदि का प्रभाव हो तो व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना द्वारा होगी, ऐसा विचार करना चाहिए। इस संदर्भ में यह याद रहे कि छठे और ग्यारहवें घर के स्वामी भी चोट देने वाले होते हैं। जब मंगल तथा केतु का प्रभाव पहला घर उसका स्वामी, आठवां घर उसका स्वामी सभी पर हो और अन्य कोई प्रभाव न हो तो मृत्यु अवश्य किसी दुर्घटना से होती है।
    यदि उपर्युक्त स्थानों आदि पर एकाध मांगलिक प्रभाव हो तो उपाय द्वारा कष्ट का निवारण किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में लग्न का सवामी और आठवें घर के स्वामी को उनके संबंधित रत्न पहनकर और मंगल तथा केतु की दान, पूजन, व्रत, मंत्र द्वारा शांति कराकर लाभांवित होना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान रहे कि मंगल को बलवान् करना आवश्यक नहीं है।

    यदि मंगल आठवें घर का मालिक होकर राहु तथा शनि की युति अथवा दृष्टि द्वारा पीड़ित हो और आठवें घर पर भी पाप दृष्टि हो तो मंगल के और आठवें घर के पीड़ित होने के कारण बवासीर आदि अंडकोषों के समीप के क्षेत्र के रोगों की उत्पत्ति होती है। ऐसी हालत में मंगल को बलवान् करना अभीष्ट होगा और यह कार्य मूंगा पहनकर किया जा सकता है।

    मंगल छोटे भाइयों का कारक है। जब यह तीसरे घर का स्वामी हो तो छोटे भाइयों का विशेष प्रतिनिधि बनता है। ऐसा मंगल यदि बलवान् होकर लग्न के स्वामी बृहस्पति अथवा सूर्य से संबंधित हो तो साले के जरिए से या उसकी मदद से दौलत के मिलने की उम्मीद रहती है। इस हालत में मंगल जितना ज्यादा ताकतवर (बलवान) होगा उतना ही साले के जरिए धन-दौलत मिलेगी। इस दशा में मंगल का रत्न मूंगा पहनकर, मंगल को बलवान् करना उचित होगा।

    कुंडली के दसवें घर में मौजूद मंगल मिला-जुला फल देगा। यह ग्रह जब बलवान् होकर दसवें घर में स्थित हो तो उन घरों को बल पहुँचेगा, जिनका कि वो स्वामी या मालिक होगा। किन्तु मंगल की चौथी दृष्टि सदा लग्न पर पड़ेगी। यह दृष्टि आयु को कम करने वाली समझनी चाहिए, चाहे मंगल लग्न में अपनी ही राशि देखता हो। इस आयु की कमी को दूर करने के लिए मूंगा तो कभी नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि मुंगा मंगल को
    और भी ज्यादा बल देगा, जिस वजह से जातक की आयु ज्यादातर कम होगी। हाँ, मंगल से संबंधित देवता हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।

    कर्क लग्न हो और उसमें सूर्य और मंगल हो, चंद्रमा छठे और शनि चौथे घर में हो तो यह योग अपमान तथा अनादर का योग है, क्योंकि यहां आदरसूचक लग्न, लग्न का मालिक, दसवें घर का मालिक या स्वामी तथा सूर्य सभी शनि द्वारा पीड़ित हैं। ऐसी दशा में शनि का उपाय बहुत जरूरी होगा। दूसरे ग्रहों को बलवान् करने के लिए सोने की अंगूठी में मूंगा और मोती दोनों लगवाकर धारण करें।

    लाल किताब के लेखक का कहना है कि मंगल के लिए साधारण नियम यह है-यदि मंगल अनिष्ट फल कर रहा हो तो इसे दूर करने के लिए तंदूर में मीठी रोटी लगवाकर दान करें या रेवड़ियाँ पानी में बहा दें। इसी प्रकार मीठा भोजन दान करें या बताशा चलते पानी (दरिया आदि) में डाल दें। मंगल के दान में दी जाने वाली वस्तुएं जिनके पास रखने में मंगल का अनिष्ट फल दूर होता है, हिरण की खाल है। मंगल के देवता श्री हनुमान जी हैं, अतः उनकी पूजा करें और प्रसाद लें।

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