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    ज्योतिष से जानिए रोग एवं कष्ट के कारक ग्रह शनि के स्वभाव के बारे में

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    ज्योतिष से जानिए रोग एवं कष्ट के कारक ग्रह शनि के स्वभाव के बारे में 

    शनि का जन्म सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से हुआ था, किन्तु शनि के सांवले रंग को देखकर सूर्य असमंजस में पड़ गया और उसने अपनी पत्नी पर यह आरोप लगाया कि शनि उसके वीर्य से उत्पन्न नहीं हुआ है। उसी समय से शनि और सूर्य में ठनी हुई है। दोनों एक-दूसरे को अपना शत्रु मानते हैं, तथा एक-दूसरे की काट में लगे रहते हैं।

    ग्रह मंडल में शनि को सेवक का पद प्राप्त है। सौर मंडल की बारह राशियों में केवल मकर और कुंभ राशि शनि के प्रभाव क्षेत्र में आती हैं। अर्थात् शनि को इन्हीं दोनों राशियों का स्वामित्व मिला हुआ है। यह तुला राशि के २० अंश तक ऊंचा और मेष राशि के २० अंश तक नीचा माना जाता है। कुंडली के सातवें घर में शनि को बलवान् कहा गया है। यह किसी वक्री ग्रह अथवा चंद्र के साथ युति करके चेष्टाबली होता है।। Hit बुध और शुक्र से शनि का बहुत अच्छा दोस्ताना है। बृहस्पति को यह न अपना दोस्त मानता है और न ही दुश्मन समझता है। यद्यपि सूर्य और मंगल इसके पक्के दुश्मनों में जाने जाते हैं। यह बात और है कि सूर्य शनि से दुश्मनी रखता है और शनि मंगत को अपना दुश्मन मानता है।

    बुध के साथ सात्त्विक तथा शुक्र के साथ राजसिक संबंध रखता है। इसे कर्म तथा भाव का कारक माना गया है। इसका विशेष अधिकार मनुष्य की जंघाओं पर रहता है। एक राशि पर यह अढाई वर्ष कायम रहता है। विंशोत्तरी शनि की महादशा १९ वर्ष की होती है। जन्मकुंडली में शनि की स्थिति से आयु, मृत्यु, चौर्यकर्म, द्रव्य की हानि, दिवाला, बंधन, जेल, मुकदमा, फांसी, दुश्मनी, त्यागपत्र, बाजुओं में पीडा, वात, गठिया एवं वायु-संबंधी रोग तथा दुष्कर्म आदि का ज्ञान भी इसी ग्रह के द्वारा किया जाता है।

    बलवान् स्व-राशिस्थ या ऊंचे (उच्च के) शनि की दशा में जातक को द्रव्य की विशेष प्राप्ति होती है। विदेश यात्रा के योग भी स्वतः बन सकते हैं, किन्तु ऐसी यात्रा से धन का कोई विशेष लाभ नहीं होता। मुकदमें में उसकी जीत होती है और वो विलास तथा ऐशो-आराम का जीवन बिताता है। शनि नीच राशि में हो तो जातक को मर्म स्थान की पीड़ा से दुःख भोगना पड़ता है। पूर्णबली शनि की दशा में जातक का नया घर बनता है। जन्म-स्थान का निर्माण होता है एवं राज्यपक्ष में उन्नति होती है। मध्यबली शनि की दशा में वाहन नष्ट हो जाता है। तस्करी, झूठ, कपट अथवा ठगी के कार्यों से धन-दौलत मिलती है। प्रौढ़ अथवा वृद्धा स्त्री के साथ संगम होता है तथा भोजन व वस्त्र-संबंधी समस्याओं से जातक चिंताग्रस्त रहता है। अल्पबली शनि की दशा में जातक को चोरी आदि का सामना करना पड़ता है अथवा वो ठगी का शिकार होता है। शीत तथा वात के कोप से कई रोग उत्पन्न होने लगते हैं। झूठे कलंक से सामाजिक सम्मान का पतन होता है एवं उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। जबकि नष्टबली शनि की दशा पुरुषों को कई प्रकार के व्यसन सिखा देती है। उसे पुत्र, मित्र आदि के विरोधों का सामना करना पड़ता है तथा किसी आकस्मिक् संकट से वो मरणतुल्य हालत में पहुंच जाता है।

    शनि का विशेष फल जीवन के आरम्भ अथवा अन्त में प्राप्त होता है। इसकी गणना पाप ग्रहों में की जाती है। जन्मकुंडली में शनि जिस घर में बैठता है, वहां से तीसरे तथा दसवें घर को एक चरण दृष्टि से, पांचवें
    और नौवें घर को दूसरी दृष्टि से तथा चौथे व आठवें घर को तीन चरण दृष्टि से और सातवें, तीसरे एवं दसवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखता है। यह जातक के जीवन में ३५ से ४२ वर्ष की अवस्था में विशेष फल देता है। 

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