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    ज्योतिष शास्त्र से जानिए केतु के आपकी राशि पर पड़ने वाले शुभ/अशुभ प्रभाव के बारे में

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    ज्योतिष शास्त्र से जानिए केतु के आपकी राशि पर पड़ने वाले शुभ/अशुभ प्रभाव के बारे में 

    राहु और केतु का फल ज्योतिषशास्त्र में (वो ज्योतिष लाल किताब के लेखक पंडित गिरधारी लाल शर्मा का हो या वराहमिहिर का) क्रमश: शनि और मंगल की भांति कहा है, अतः जब शनि के साथ राहु भी पीड़ित हो और शनि को बलांवित करना अभीष्ट हो तो राहु भी बलवान् किया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं! इसी प्रकार जब मंगल को बलवान् करना अभीष्ट होऔर केतु भी मंगल की भांति कार्य कर रहा हो तो केतु को भी बलवान् किया जाना चाहिए।

    उदाहरण के लिए मान लीजिए कि लग्नाधिपति शनि पर मंगल और केतु की दृष्टि है और इस पीड़ा के फलस्वरूप शनि स्नायु रोग दे रहा.है तो ऐसी स्थिति में राहु को बलवान् करने के लिए गोमेद धारण किया जा सकता है, क्योंकि शनि और राह दोनों स्नायु का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान लीजिए, मंगल लग्लेश (लग्न का स्वामी) तथा चंद्रलग्न का स्वामी होकर शनि तथा राहु की दृष्टि में है और मंगल को बलवान् करना इसलिए आवश्यक है कि हम चाहते हैं कि जातक पुलिस के महकमे में नौकरी पाए, तो ऐसी हालत में मंगल के साथ-साथ केतु को भी बलवान् किया जा सकता है और तब लहसुनिया धारण किया जा सकता है।

    साधारण रूप-से राहु/केतु की दृष्टि में पापत्व होने के कारण इनकी दृष्टि अनिष्ट करती है। ऐसी स्थिति में इनके रत्न धारण नहीं करवाने चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति की लग्न वृष है और शुक्र व चंद्र दूसरे घर में, सूर्य/केतु चौथे और राहु दसवें घर में है तो ऐसी दशा में राहु की दृष्टि लग्न के स्वामी चंद्र और सूर्य सभी स्वास्थ्य द्योतक अंगों पर होने के कारण राहु जातक को वायुदर्द, गठिया आदि देगा। अतः राहु को उसका रत्न गोमेद धारण करके बलवान् करना चाहिए, ताकि रोग आगे न बढ़े, अर्थात् उसका शमन हो जाए।

    केतु मंगल की भांति ही एक अग्नि ग्रह है और इसकी दृष्टि में भी आग है, विशेषतया जब इस पर अग्नि द्योतक ग्रहों (सूर्य अथवा मंगल) का प्रभाव हो। सूर्य और केतु दोनों जहां पापी हैं, वहां ये दोनों ग्रह अग्नि का रूप हैं। जहां इनकी युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव पड़ेगा उससे पृथक्ता की संभावना होगी और उस अंग का अग्नि से जल जाना भी संभावित होगा, जैसे धनु लग्न हो और सूर्य व केतु कुंडली के पांचवें घर में इकट्ठे हों तो इन ग्रहों का प्रभाव पांचवं, नौवें, ग्यारहवें और पहले घर पर पड़ेगा।

    पांचवें घर की स्थिति में गर्भ की हानि होगी। नौवें घर पर दृष्टि पिता से पृथक्ता लाएगी। ग्यारहवें घर पर दृष्टि बड़े भाई से वैमनस्य उत्पन्न करेगी।

    लग्न पर इनकी दृष्टि शरीर में आग लगा देगी, विशेषतया जबकि मंगल कहीं भी बैठकर लग्न तथा चंद्र पर अपना प्रभाव डाल रहा हो। जैसे मंगल दसवें घर में हो और चंद्र लग्न में तो सूर्य/केतु की दशा निश्चित रूप से अग्नि-दुर्घटना का रूप देगी। ऐसी स्थिति में लग्नेश (लग्न के स्वामी) गुरु को चांदी की अंगूठी में पीला पुखराज धारण कर बलवान् करें। _ यदि चंद्र और केतु की यति हो तो हानि चंद्र की होगी और उस समय तो अवश्य ही जबकि चंद्र क्षीण हो। यदि चंद्र पर मंगल का भी प्रभाव हो तो फिर शरीर में चोट लगने और दुर्घटना होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसी स्थिति में चंद्र को बलवान करना आवश्यक होता है और साथ ही मगल और केतु की शांति के लिए भी उपाय किया जाना चाहिए। जैसा कि हमने पहले बताया कि केतकी शांति के लिए गणेश जी की पूजा, उनके मत्र का जप तथा केतु से संबंधित दान जैसे काले कुत्ते को खाना खिलाना, गाय, कंबल आदि का दान आवश्यक है।

    जब चंद्र और राहु दोनों पापी होकर व्यवहार कर रहे हों तो स्पष्ट है कि उन सब.घरों की वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को हानि पहुंचेगी, जहां कि ये दोनों ग्रह स्थित हैं या जिस स्थान पर ये दृष्टिपात कर रहे हैं। जैसे केतु और चंद्र यदि नौवें घर में मेष राशि में स्थित हों, सूर्य आठवें अथवा दसवें घर में हो और मंगल छठे घर में हो तो जातक के अंधे हो जाने की संभावना है, क्योंकि चंद्रमा बारहवें घर का स्वामी होकर पाप युक्त या पाप दृष्ट है और बारहवें घर पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है और साथ ही बारहवें घर के स्वामी चंद्र पर भी। ऐसी स्थिति में चंद्र को बलांवित करना होगा तथा मंगल को उपर्युक्त विधि के अनुसार शांत करना होगा। केतु की शांति का उपाय हम पीछे बता चुके हैं।

    मंगल और केतु दोनों पापी ग्रह हैं, साथ ही चोट करने वाले भी हैं। इन दोनों का मिलाप हो, तो केतु पांचवें, सातवें और नौवें घरों को भी चोट आदि आघात पहुंचेगा। उदाहरण के लिए केतु और मंगल पांचवें घर में हैं, चंद्रमा लग्न में धनु राशि में है; सूर्य नौवें घर में है और शक्र सर्य के साथ है तो केतु और मंगल की यह युति (मिलाप) जहां तक पांचवें घर का संबंध है, संतानों का नाश करेगी।

    केतु और मंगल के नौवें घर पर प्रभाव के कारण पिता को चोट लगेगी। ग्यारहवें घर और उसके स्वामी शुक्र पर इस प्रभाव के कारण धन की हानि और जंघा में चोट का योग बनेगा। लग्न तथा चंद्र पर उक्त प्रभाव के कारण स्वयं जातक के चोटें लगेंगी। अतः संतान के लिए मंगल को, पिता के लिए सूर्य को, जंघा के लिए शुक्र को और स्वयं के शरीर के लिए गरु जी को बलांवित करें और साथ ही मंगल व केतु की शांति कराएं।

    मान लीजिए, केतु और बुध कुंडली में इकट्ठे हैं, तो अवश्य ही केतु बुध को हानि पहुंचाएगा। उदाहरण के लिए लग्न मेष है और केतु तथा बुध एकादश भाव (ग्यारहवें घर) में बैठे हैं। यहां केतु का प्रभाव तीसरे अंग पर पूर्ण है। अतः बचपन में ही बाहु पर चोट अथवा सांस की नली में कष्ट की संभावना होगी। इसके उपाय के रूप में बुध बलवान् करना होगा, तथा केतु की शांति कराना भी आवश्यक होगा। बृहस्पति और केतु के बारे में यह बात सब जान हो चुके हैं कि केतु एक पापी ग्रह है और शुक्र शुभ ग्रह है। इसलिए बृहस्पति को केतु से हानि पहुंचनी अवश्यसंभावी है।

    उदाहरण के लिए सिंह लग्न है, मंगल दूसरे घर में कन्या राशि का है और बृहस्पति और केतु कुंडली के नौवें घर में बैठे हैं, ऐसी स्थिति में केतु का प्रहार मंगलं के प्रभाव को लेकर पांचवें घर, पांचवें घर के स्वामी और पुत्र कारक बृहस्पति सभी पर होगा।

    । अतः यदि बृहस्पति बलवान् न हो अर्थात् सूर्य से दूर होकर स्थित न हो तो यह योग पुत्र के अभाव का सूचक होगा और यदि बृहस्पति वक्री होने के कारण बलवान् हुआ तो फिर केतु तथा मंगल का प्रभाव पुत्र को चोटें या हड्डी टूटने तक ही सीमित रहेगा, तो भी पुत्रों की संख्या अधिक न होगी। ऐसी स्थिति में पुत्र के शरीर की रक्षा के लिए बृहस्पति को सोने की अंगूठी में पुखराज पहनकर बलवान् करें और केतु का उपाय शांति होगी। यहां मंगल की भी शांति करानी चाहिए।

    केतु शुक्र का शत्रु है, इसलिए केतु द्वारा शुक्र को हानि पहुंचना स्वाभाविक है। जैसे मेष लग्न हो और शुक्र और केतु दोनों दसवें घर में मकर राशि में स्थित हों तो यह योग आंखों तथा गले में रोग उत्पन्न करने वाला है। यहां केतु की शांति और शुक्र को बलवान किया जाना आवश्यक होगा और यदि कुण्डली में केतु और शनि इकट्ठे हों तो हानि शनि की ही होगी।

    यदि कन्या लग्न हो और केतु/शनि दसवें घर में पड़े हों तो इस योग के कारण केतु द्वारा छठा घर ठसका स्वामी शनि पीड़ित होगा। परिणामस्वरूप शरीर रोगी रहेगा। ऐसी स्थिति में केतु को शांत करें, नीलम पहनकर शनि. को बलवान् करें।

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