अपने भीतर का दीया जलाओ - ओशो
अपने भीतर का दीया जलाओ - ओशो
अगर इस कमरे में अंधकार भरा हो और हम उसको लड़ के धक्के दे कर निकालने लगें तो हम निकाल न पाएंगे। क्यों? अंधेरा बहुत ताकतवर है इसलिए? शायद जब न निकाल पाएंगे तो हमको यही ख्याल पैदा होगा कि इतने लोग हैं हम और इस कमरे के अंधेरे को निकालते हैं और अंधेरा नहीं निकालता। हम कमजोर हैं, अंधेरा ताकतवर है। यही ख्याल पैदा होगा। सीधा लाजिक यही है। हम निकालते हैं और नहीं निकलता हम हार जाते हैं, वह जीत जाता है। वह ताकतवर है।लेकिन मैं आपसे कहता हूं अंधेरा ताकतवर नहीं है। अंधेरा है ही नहीं इसलिए आप नहीं निकाल पाते। अगर वह होता तो हम अपनी ताकत बढ़ा सकते थे। डाइनामाइट ले आते और तलवारें ले आते और एटम बम ले आते और निकाल देते। लेकिन हम कुछ भी ले आएं हम निकाल न पाएंगे अंधेरा है ही नहीं। फिर भी दिखाई तो पड़ता है और जब मैं कहता हूं कि अंधेरा नहीं है तो मेरा मतलब क्या है? मेरा मतलब है अंधेरा प्रकाश की एबसेंस है, अनुपस्थिति है। अंधेरा किसी चीज की प्रेजेंस नहीं है। अंधेरा कोई चीज नहीं है। अंधेरा केवल अभाव है, केवल एबसेंस है। प्रकाश नहीं है इसी का दूसरा नाम अंधेरा है। अंधेरा अलग से कुछ भी नहीं है। इसलिए आप दीया जला लें और खोजें अंधेरा कहां है। तो वह अंधेरा आपको नहीं मिलेगा।
शायद आप सोचेंगे बाहर चला गया तो आप गलती में हैं। आप गलती में हैं अगर सोचते हैं बाहर चला गया। बाहर भी प्रकाश जला लें सब तर तरफ और यहां दीया जलाएं तो आपको अंधेरा कहीं से जाता हुआ दिखाई नहीं पड़ेगा। अंधेरा था ही नहीं, चला गया, यह भाषा की गलती है। आ गया, यह भी भाषा की गलती है। केवल प्रकाश आता है और प्रकाश जाता है। अंधेरा न जाता है और न अंधेरा आता है। अंधेरा नहीं इसलिए जो लोग अंधेरे से सीधी लड़ाई लड़ेंगे वे पागल हो जाएंगे। और या पाखंडी हो जाएंगे। अगर कोई आदमी एकदम आ कर घर के बाहर कहे कि हां मैंने अंधेरे को निकाल कर बाहर कर दिया तो समझ लेना यह पाखंडी है। और अगर वह कहे कि लड़ रहा हूं, लड़ रहा हूं, परेशान हुआ जा रहा हूं, अंधेरा निकलता नहीं है लेकिन लड़ाई तो जारी रखनी है, अंधेरे को निकालना ही है तो समझना की यह आदमी पागल होने के रास्ते पर चल रहा है।
अंधेरे को निकालने का तो कोई रास्ता नहीं है लेकिन प्रकाश को जलाने का रास्ता है। और अब तक अंधेरे को निकालने में लगे रहें हैं। हम बच्चों को सिखाते हैं क्रोध मत करो, बेईमानी मत करो, यह न करा,वह न करो। सब न करो, सब अंधेरे को निकालने की बातें हैं। प्रकाश को जलाना सिखाइए। अंधेरे को निकालने का कोई सवाल नहीं है।
भीतर जो चेतना है जो कानशेशनेस है उसे जगाने का रास्ता है उसे जगाइए। उसे उठाइए उभारिए वह जो भीतर सोई है चेतना उसे जगाइए वह जितनी जगेगी उतना ही अंधेरा नहीं पाया जाएगा। वह दीया जल जाए, अंधेरा नहीं है। आत्म ज्ञान वह दीया है। धर्म उस दीये को जलाने का उपाय है। नीति उपाय नहीं है। नीति से ज्यादा घातक, ज्यादा पायजनस, ज्यादा विषाक्त और जहरीली और कोई बात नहीं है। और दुनिया ये जो इतनी अनैतिक दिखाई पड़ रही है,यह नैतिक शिक्षा का परिणाम है। यह मत सोचिए कि नीति की कमी के कारण के ऐसा हो रहा है। यह नीति की अति शिक्षा की प्रतिक्रिया है।
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