क्रोध इस बात की खबर है कि भीतर आत्मा अंधकार में है - ओशो
क्रोध इस बात की खबर है कि भीतर आत्मा अंधकार में है - ओशो
एक आदमी को बुखार है उसके हाथ पैर गरम हैं तो उसके हाथ पैर हम ठंडे करने में लग जाएं और हम सोचें की गरमी है तो हाथ पैर हम इसके ठंडे कर दें। तो शायद हम मरीज को मार ही डालेंगे। बुखार गरमी का नाम नहीं है, गरमी तो केवल खबर है कि भीतर कोई बीमारी है और शरीर को उस बीमारी से लड़ना पड़ रहा है इसलिए शरीर गरम हो गया। गरमी तो लक्षण है बीमारी का गरमी से नहीं लड़ना है। गरमी तो मित्र है खबर दे रही है वह तो अगर शरीर गरम न हो और भीतर बीमारी रहे तो आदमी मर ही जाएगा उसका पता भी नहीं चलेगा। शरीर जल्दी से खबर देता है गरम हो कर कि भीतर कुछ गड़बड़ हो गई है उसे ठीक करो। लेकिन जो गरमी को ठीक करने में लग जाएगा वह भूल में पड़ गया। एक आदमी मेरे पास भागा हुआ आए कि मेरी मां बीमार है और मैं उसी का इलाज करने लगूं। तो उसकी मां तो मरेगी ही यह आदमी भी मरेगा। यह तो केवल खबर देने आया था। यह खुद बीमार नहीं था।क्रोध इस बात की खबर है कि भीतर आत्मा अंधकार में है, बीमार है, अस्वस्थ है। बेइमानी, असत्य, इस बात की खबर है कि भीतर प्राण स्वस्थ नहीं है। ये सारी खबरें हैं, ये लक्षण हैं। यह बीमारी नहीं है। बीमारी कुछ और है। बीमारी दूसरी ही है और बीमारी एक ही है। और वह बीमारी है आत्म अज्ञान। स्वयं के भीतर जो चेतना है उसको न जानना, उसको न पहचानना। वह जो सेल्फ इगनोरेंस है, वही है बीमारी, बाकी सब उससे पदा होनेवाले लक्षण हैं।
नीति इन लक्षणों का इलाज करती है। इसलिए नीति कोई उपाय नहीं है। धर्म उस आत्मा में जो अस्वास्थ्य है वह जो आत्मा का अज्ञान है उससे मुक्त करता है और उससे मुक्त होते ही ये लक्षण एकदम विलीन हो जाते हैं समाप्त हो जाते हैं।
जैसे ही भीतर कोई स्वयं को जानने में समर्थ होता है वैसे ही वह हंसेगा, हैरान हो जाएगा कि मैं क्रोध भी करता था। उसे आप मजबूर करें क्रोध करने को तो भी वह क्रोध न कर सकेगा। उसे आप झूठ बोलने को कहे तो वह न बोल सकेगा। क्योंकि अब वह जानता है और अब वह समझता है, क्रोध क्या था और वह कैसे हुआ था? स्वस्थ आदमी से आप कहें कि जरा फीवर ला कर दिखाओ तो वह न ला सकेगा। क्योंकि फीवर लाना स्वस्थ आदमी के हाथ के बस की बात नहीं है। बुखार ले आना उसके हाथ की बस की बात नहीं है बीमारी थी तो बुखार था।
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