आंख बंद करने से वह नहीं मिटेगा जो भीतर है - ओशो
आंख बंद करने से वह नहीं मिटेगा जो भीतर है - ओशो
ये दोनों ही व्यक्ति धार्मिक नहीं। ये गृहस्थ धार्मिक नहीं जो घर में रह रहा है और वह संन्यासी धार्मिक नहीं जो घर छोड़ कर भागता है। इन दोनों का जहां तक इस बात का संबंध है कि बाहर अर्थ है ये दोनों सहमत और राजी हैं। यह एक ही आदमी की दो शक्लें हैं। यह एक ही आदमी के दो पहलू हैं। यह एक ही दृष्टि के दो रूप हैं। यह भिन्न दृष्टि नहीं है। भिन्न दृष्टि तो उसकी है जिसे बाहर अर्थ दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। तो न तो वह बाहर की चीजों के पीछे भागता है और न उनसे डर के भागता है। उसका भागना, उसका दौड़ना बंद हो जाता है। न तो वह धन के पीछे भागता है और न धन को छोड़ कर भागता है।एक बहुत बड़े संन्यासी के पास मैं था। लागों ने कहा उनके सामने अगर कोई रुपये पैसे ले जाए तो वह आंख बंद कर लेते हैं। तो मैंने कहा कि फिर रुपये पैसे से उनका लगाव जारी है। उनका संबंध कायम है। रुपये पैसों पर उनकी नजर है। नहीं तो आंख बंद करने का क्या कारण है? कौन सी वजह है। अगर कोई आदमी स्त्री को देख कर आंख बंद कर लेता हो तो समझ लें उसकी आंख स्त्री पर है। नहीं तो आंख बंद करने की क्या वजह है? भागने की क्या वजह है? डरने की क्या वजह है? कोई स्त्री से थोड़े ही डरता है? कोई स्त्री पुरुष से थोड़े ही डरती है। डरती है अपने भीतर छिपे हुए भाव से। डरता है व्यक्ति अपने भीतर छिपी हुई कामना से। वह वहां मौजूद है इसलिए डर है इसलिए आंख बंद करते हैं। और आंख बंद करने से वह मिटेगा जो आंख के भीतर है। आंख बंद करने से उसका क्या संबंध है? कोई भी संबंध नहीं है। आंख खुली हो या बंद हो जो भीतर है वह भीतर है।
तो हम धन के पीछे भागे कि धन छोड़ के भागे। हम राज्य को पकड़े या राज्य को छोड़े। दोनों हालत में वहीं हैं। कोई फर्क नहीं है। संन्यास के भ्रम में, इस बात के भ्रम में कि जो बाहर को छोड़ कर भागता है वह धार्मिक है। जमीन पर धर्म को नहीं आने दिया। यह बात बिलकुल ही भ्रामक है। यह वही आदमी है जो चीजों के पीछे भाग रहा था। यह वही आदमी है बिलकुल वही जो चीजों को छोड़ कर भाग रहा है। इसके भीतर कोई भी क्रांति नहीं हो गई।
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