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    जो तोड़ने वाला है वह धर्म नहीं है - ओशो

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    जो तोड़ने वाला है वह धर्म नहीं है - ओशो 

    जो तोड़ने वाला है वह धर्म नहीं है। लेकिन जो जोड़ दे प्राणों को प्राणों से, एक को सबसे और वह जोड़ तभी पैदा होता है जब आंख भीतर जाती है। जोड़ पैदा नहीं होता बल्कि आंख भीतर जाते ही पता चलता है कि हम तो जुड़े हैं, संयुक्त हैं, इकट्ठे हैं। एक ही प्राण एक ही चेतना बहुत बहुत रूपों में प्रकट और अभिव्यक्त है। और जैसे ही आंख भीतर जाती है ज्ञात होता है कि न कोई दुख है दुख था इसलिए की हम बाहर थे बाहर होना ही दुख था। न कोई चिंता है न कोई पीड़ा और न है मृत्यु। बाहर हम थे इसलिए उसे नहीं देख पाते थे जो भीतर है और अमृत है।

    इस छोटी सी चर्चा में मैंने एक ही बात आपसे कही, एक ही छोटा सा सूत्र। देखें आंख खोल कर जीवन को, निरीक्षण करें। तो बाहर की व्यर्थता दिखाई पड़ सकती है और बाहर की व्यर्थता दिखाई पड़ आए तो भीतर की सार्थकता पर तत्क्षण आंख पहुंच जाती है। और जिसकी भीतर की सार्थकता पर आंख पहुंच गई वह कोई बाहर की दुनिया को वह जानने वाला नहीं बन जाता है बल्कि वही बाहर की दुनिया के लिए भी आनंद का और सुवास का श्रोत हो जाता है। वह कोई बाहर के दुनिया को मिटाने वाला और वह जानने वाला नहीं होता। बल्कि वही आधार बन जाता है, बाहर के दुनिया के लिए भी।

    क्योंकि जब भीतर सुगंध पैदा होती है तो सुगंध बाहर फैलनी शुरू हो जाती है और जब भीतर आनंद पैदा होता है तो आनंद बाहर बंटना शुरू हो जाता है और जब भीतर प्रकाश का जन्म होता है तो उसकी किरणें बाहर पहुंचनी शुरू हो जाती हैं। जो भीतर है फिर वह बाहर बंटने लगता है।

    इसलिए जो स्वयं को जानता है और जो धर्म में जीता है वह संसार को उजाड़ता नहीं बल्कि उसके लिए तो सारा संसार ही परमात्मा हो जाता है। में यही प्रार्थना करूंगा, परमात्मा करे आपके भीतर से सुगंध और सत्य और संगीत पैदा हो सके। वह मौजूद है आपकी आंख वहां पहुंच जाए तो वह जाग जाएगा उठ आएगा और प्रकट हो जाएगा। बीज मौजूद हैं अगर आपकी आंख उन बीजों पर पड़ गईं तो वे अंकुरित हो जाएंगे और उनमें फूल आ जाएंगे। और जब किसी आदमी के जीवन में फूल आते हैं तो वह पूर्णता को उपलब्ध हो जाता है।

     - ओशो 

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