जिसकी आत्मा की जड़ें सूख जाएँगी, उसकी बगिया में फूल न खिलेंगे - ओशो
जिसकी आत्मा की जड़ें सूख जाएँगी, उसकी बगिया में फूल न खिलेंगे - ओशो
माओत्से तुंग, अपने बचपन की एक घटना कहा है। कहा है कि मैं छोटा था मेरी मां कि एक बहुत खूबसूरत बगिया थी। उस बगिया में बड़े प्यारे फूल लगते थे। सारे गांव के लोग उस बगिया के फलों को देख कर हैरानी में रह जाते थे और दर-दर के गांवों के लोग उन फूलों को देखने आते थे। मां बीमार पड़ी। उसे बीमारी की उतनी चिंता न थी जितनी अपनी बगिया की थी कि उसके फूलों का, उसके पौधों का क्या होगा? कहीं वे बिगड़ न जौं, कहीं वे सूख जाएं। उसने बड़े जीवन भर की मेहनत से उस बगिया को खड़ा किया था। उसने खुद मेहनत की थी।वह चिंतित थी तो माओ ने अपनी मां को कहा कि चिंता न करें मैं आपकी बगिया की देखभाल कर लूंगा। मैं फिकर कर लूंगा आप चिंता न करें। और वह सुबह से शाम तक उस बगिया की फिकर करने लगा। लेकिन दो चार दिन बीते कि उसको हैरानी हुई। पौधे सूखने लगे और कुम्हलाने लगे। तेज धूप के दिन थे और बगिया मुझने लगीं और जो कलियां आई थीं वे कलियां ही रह गईं, फूल न पाईं। वह बड़ा चिंतित हुआ और ज्यादा मेहनत करने लगा। सुबह से शाम बगिया में ही मेहनत करता लेकिन पंद्रह दिन बाद मां जब थोड़ी ठीक हुई और बगिया में आ सकी तब तक बगिया बरबाद हो गई थी। पौधे कुम्हलाए हुए खड़े थे। पत्ते सूख गए थे। उसकी मां हैरान हुई उसने कहा तुम दिन भर रहते थे, यह क्या हाल हुआ? माओ ने कहा मैं तो एक-एक फूल को पानी पिलाता था। एक-एक पत्ते को पोंछता था। एक-एक फूल को चूमता था कि बढ़ो, बड़े हो जाओ लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि यह बगिया सब सूख गई?
उसकी मां हंसी और उसने कहा पागल, फूलों में फूलों के प्राण नहीं होत, प्राण होते हैं जड़ों में। तू फूलों को नहलाता रहा और जड़ों की कोई फिकर नहीं की। जड़ें दिखाई नहीं पड़तीं, अदृश्य हैं। फूल दिखाई पड़ते हैं, दृश्य। लेकिन जो दृश्य है उसकी जड़ें अदृश्य में हैं। जो दिखाई पड़ता है उसकी जड़ें उसमें हैं, जो दिखाई नहीं पड़ता। अगर उसकी तुमने फिकर की होती तो फूलों की कोई फिकर करने की जरत नहीं थी। वे अपनी फिकर खुद कर लेते। अगर तुमने जड़ों में पानी दिया होता तो फूल तो अपने से आ जाते, पत्ते अपने से ताजे हो जाते, वे तो जड़ों की ताजगी से अपने आप ताजे हो जाते हैं। लेकिन तू तो पत्तों और फूलों को नहलाता रहा और जड़ें सूखती चली गईं। जड़ें सूख गईं तो पत्तों और फूलों को कितना भी नहलाएं तो कुछ भी नहीं हो सकता।
मैंने जब यह बात सुनी तो मैं हैरान हुआ यह बात तो पूरे आदमी की जिंदगी के बाबत सच है। हम फूलों को संभाल रहें हैं और जड़ों को भूल गए हैं। नीति तो केवल फूल है। सुंदर-सुंदर फूल हैं सत्य के, अहिंसा के, प्रेम के, कणा के, बड़े सुंदर हैं और जिस जीवन में खिलते हैं वह बहुत धन्य है। लेकिन वे फूलों की जड़ें आत्मा में हैं और जो उन फूलों को ही संभालता है उसकी आत्मा की जड़ें सूख जाएँगी, उसकी बगिया में फूल न खिलेंगे। फिर एक रास्ता है,बाजार में प्लास्टिक के कागज के फूल मिलते हैं वह उनको खरीद लाएगा और उनको अपने ऊपर से चिपका लेगा और फिर उन्हीं फूलों को मानकर जी लेगा।
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