• Latest Posts

    निषेध ही आमंत्रण है - ओशो

    Prohibition-is-the-invitation---Osho

    निषेध ही आमंत्रण है - ओशो 

    निषेध विरोध लाता है। यहां खिड़की पर हम एक तख्ती टांग दें और लिख दें कि यहां झांकना मना है। फिर आपमें से कोई इतना ताकतवर है जो बिना झांके निकल जाए। और अगर निकल गया तो रात भर पछताएगा और नींद नहीं आ सकेगी। और सपने में देखेगा कि पहुंच गया उसी दरवाजे पर और पट्टी उघाड़ कर देख रहा है कि भीतर क्या है? शायद जिंदगी भर वह परेशान रहे और बार बार यह ख्याल आ जाए कि क्या था उस दरवाजे के भीतर जिसको मैं छोड़ आया। निषेध, मत झांको, झांकने की इच्छा पैदा करता है। नैतिक शिक्षा ने अनैतिक होने की भाव दशा पैदा कर दी है। मत करो, मत करो, मत करो, सब तरफ से यह आवाज भीतर बच्चों के मन में यह प्रतिक्रिया बन गई कि करो, करो, करो।

    फ्रायड अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ एक दिन एक बगीचे में गया। छोटा बच्चा था, उसकी पत्नी ने कहा कि देखो, पास ही रहना और जो फव्वारा है बगीचे में, उस तरफ मत जाना। वे दोनों गपशप करते रहे और घूमते रहे। सांझ ढल गई और रात उतर आई और जब वे लौटने लगे तो उन्होंने देखा कि बच्चा नदारद है। उसकी पत्नी घबड़ाई और उसने कहा कि अब कहां ढूढेंगे इतनी बड़ी रात इतना बड़ा बगीचा। दरवाजे बंद होने को आ गए हैं वह बच्चा कहां गया? तो फ्रायड ने यह कहा कि पहले मुझे यह बताओ तुमने कहीं जाने को मना तो नहीं किया था। उसने कहा मैंने मना किया था कि फव्वारे पर मत जाना। उसने कहा चलो पहले फठवारे पर देख लें। सौ में से निन्यानबे माएके तो ये हैं कि वह फठवारे पर हो, अगर उसमें थोड़ी भी बुद्धि है तो फव्वारे पर होगा। अगर बिलकुल बुद्धिहीन है तो कहीं और भी हो सकता है। वे गए वह फव्वारे पर पैर लटकाए हुए बैठा था।

    यह बच्चों में प्रतिक्रिया आई है यह बुद्धिमत्ता का लक्षण है। बुद्धिहीन रहे होंगे वे लोग जिन्होंने इसके खिलाफ विरोध नहीं किया। बढ़ती हुई बुद्धिमत्ता और विचार इसका विरोध करेगी। क्योंकि निषेध का विरोध बिलकुल स्वाभाविक है। फिर अब हम क्या करें? जाने दें गर्त में, जो हो होने दें। नहीं यह मैं नहीं कह रहा हूं। मेरी बात को गलत न समझ लेना। मैं यह कह रहा हूं कि हम जो कर रहे थे वह गलत था।  निषेध न करें। यह न कहें कि यह न करो यह न करो यह न करो। चित्त पर यह भाव न लौं। बल्कि क्या करो? किसको जगाओ ? कोई पाजिटीव, कोई विधायक साधना जीवन में चाहिए, जिससे आत्मा जगे, जागरूक हो। तो आज की संध्या तो मैं इतना ही कहूंगा निषेधात्मक नीति अर्थहीन है अर्थहीन ही नहीं, व्यर्थ है, व्यर्थ ही नहीं घातक है।

     - ओशो 

    No comments