जिसने भीतर खोजा उसने पाया - ओशो
जिसने भीतर खोजा उसने पाया - ओशो
पूरे मनुष्य के इतिहास में एक आदमी नहीं जो यह कह सके कि मैंने बाहर खोजा और पा लिया और दूसरी बात भी इतनी ही निरपवाद सत्य है जिसने भीतर खोजा उनमें से भी एक भी आदमी ऐसा नहीं जिसने कहा हो मैंने भीतर खोजा और नहीं पाया। अगर किसी चीज को साइंटीफिक टूथ कहा जा सके, किसी चीज को वैज्ञानिक सत्य कहा जा सके तो वह यह है। क्योंकि इसका कोई एक्सेप्शन नहीं है कोई अपवाद नहीं है। यह यूनिवर्सल है। यह सार्वलौकिक है। यह सर्व लोक में सर्व मनुष्य के इतिहास में प्रमाणित है कि बाहर नहीं कोई अर्थ पाया जा सका।करोड़-करोड़, अरब आदमी दौड़े और समाप्त हो गए। हम उनकी लाशों पर खड़े हैं। लेकिन हम नीचे झुक के नहीं देखते कि हमारी पैर में किनकी धूल है? किनकी लाशें थोड़े से लोगों ने भीतर भी खोजा है और पाया है। वे थोड़े से लोग ही सुगंध की तरह प्रकाश की तरह। वे थोड़े से लोग ही उस सुवास की तरह हैं उस संगीत की तरह जो कभी कभी हमारे कानों में पड़ जाता है और कोई याद जगा देता है। खोई स्मृति और एक ख्याल और एक धुन पैदा हो जाती है। हम भी खोजें। क्या ऐसा नहीं हो सकेगा कि कभी पूरा मनुष्य का समाज इस सत्य को खोजने में समर्थ हो जाए? क्या ऐसा कभी नहीं हो सकेगा कि मनुष्य इस पृथ्वी पर बहुत बड़ी संख्या में भीतर जो छिपा है उसे जान ले?
ऐसा हो सकेगा। क्योंकि अगर एक मनुष्य के जीवन में भी ऐसा हो सका है तो फिर मान लें समझ लें इस बात को पहचान लें इस बात को कि जो एक मनुष्य के जीवन में भी हो सका है। अगर एक बुद्ध या एक महावीर या एक कृष्ण, एक क्राइस्ट के जीवन में अगर कोई आनंद की किरण फूटी है और जीवन आलोकित हो उठा है तो हर मनुष्य हो गया हकदार उसको पाने का क्योंकि बीज अगर एक अंकुर ले आता है तो सभी बीज अंकुर ले आएंगे। अगर एक मनुष्य के भीतर ऐसी परमात्मा की सुगंध उठ आती है तो हर मनुष्य की संभावना हो गई, यह पोटेंशियलीटी हो गई। उसके भीतर भी यह संभावना प्रकट हो सकती है। हो सकता है किसी दिन जमीन पर, ऐसा दिन ऐसा लोक कि बहुत अधिक लोगों के जीवन संगीत और प्रेम और प्रकाश से भर जाएं।
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