नासमझ सुलझाने चलते हैं, तो और उलझा देते हैं- ओशो
नासमझ सुलझाने चलते हैं, तो और उलझा देते हैं- ओशो
एक आदमी को सर्दी—जुकाम था, बहुत दिनों से था। और बार—बार लौट आता था। बड़े—बड़े चिकित्सकों के पास गया, कोई इलाज न कर पाया। फिर एक नीम—हकीम मिल गया। उसने कहा, ‘यह भी कोई बड़ी बात है! यह तो बायें हाथ का खेल है! चुटकी बजाते दूर कर दूंगा! इतना करो : सर्दी की रातें हैं, आधी रात में उठो। झील पर जाकर नग्न स्नान करो। झील के किनारे खड़े होकर ठंडी हवा का सेवन करो!’वह आदमी बोला, ‘आप होश में हैं या पागल हैं! सर्द रातें हैं; बर्फीली हवाएं हैं। आधी रात को नंग— धडंग झील में स्नान करके खड़ा होऊंगा—हड्डी—हड्डी बज जायेगी! इससे मेरा सर्दी—जुकाम दूर होगा?
नीम हकीम ने कहा, ‘यह मैंने कब कहा कि इससे सर्दी—जुकाम दूर होगा! इससे तुम्हें डबल निमोनिया हो जायेगा! और डबल निमोनिया का इलाज मुझे मालूम है! फिर मैं निपट लूंगा!’
नासमझ सुलझाने चलते हैं, तो और उलझा देते हैं! नीम—हकीम से सावधान रहना जरूरी है। बीमारी इतनी खतरनाक नहीं जितना नीम—हकीम खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
बीमारी का तो इलाज है, लेकिन नीम—हकीम के चक्कर में पड़ जाओ, तो इलाज नहीं है। और नीम—हकीमों से दुनिया भरी हुई है।
इस दुनिया में जीवन जटिल न होता, अगर जीवन के व्याख्याकार तुम्हें न मिल गये होते। उन्होंने सर्दी—जुकाम को डबल निमोनिया में बदल दिया है!
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