• Latest Posts

    एक मज़ार - ओशो

    एक मज़ार - ओशो

     एक मज़ार - ओशो

    किसी मज़ार पर एक फकीर रहता था।
    सैकड़ों भक्त उस मज़ार पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे।
    उन भक्तों में एक बंजारा भी था।
    वह बहुत गरीब था,
    फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता,
    फकीर की सेवा करता,
    और
    फिर अपने काम पर जाता,
    उसका कपड़े का व्यवसाय था,
    कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता, कपड़े बेचता।
    एक दिन उस फकीर को उस पर दया आ गई,
    उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया।
    अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं।
    वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता
    तो खुद भी गधे पर बैठ जाता।
    यूं ही कुछ महीने बीत गए,,
    एक दिन गधे की मृत्यु हो गई।
    बंजारा बहुत दुखी हुआ,
    उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया,
    उसकी कब्र बनाई
    और फूट-फूट कर रोने लगा।
    समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने
    जब यह दृश्य देखा,
    तो सोचा
    जरूर किसी संत की मज़ार होगी।
    तभी यह
    बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है।
    यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर
    माथा टेका और अपनी मन्नत हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया।
    कुछ दिनों के उपरांत ही उस
    व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई। उसने
    खुशी के मारे सारे गांव में
    डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण फकीर की मज़ार है।
    वहां जाकर जो अरदास करो वह पूर्ण होती है।
    मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं वहां।
    उस दिन से उस कब्र पर
    भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया।
    दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादे बख्शाने वहां आने लगे।
    बंजारे की तो चांदी हो गई,
    बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था।
    एक दिन वही फकीर जिन्होंने बंजारे
    को अपना गधा भेंट स्वरूप
    दिया था वहां से गुजर रहे थे।
    उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला-
    "आपके गधे ने
    तो मेरी जिंदगी बना दी। जब तक जीवित था
    तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था
    और मरने के बाद
    मेरी जीविका का साधन बन गया है।"
    फकीर हंसते हुए बोले,
    "बच्चा! जिस मज़ार
    पर तू नित्य माथा टेकने आता था,
    वह मज़ार इस गधे की मां की थी।"
    बस यूही चल रहा है ।।

    -ओशो


    No comments