मौन को अपना ध्यान बनने दें - ओशो
मौन को अपना ध्यान बनने दें - ओशो
जब भी आपको समय मिले, मौन में सिमटकर बैठ जाएँ -- और सच में, यही मेरा मतलब है -- सिमट जाएँ जैसेकि आप अपनी माँ के गर्भ में एक छोटे से बच्चे हैं। ऐसे बैठे रहें।
फिर धीरे-धीरे आपको लगेगा कि अपना सिर जमीन पर टिका दें, तब सिर को जमीन पर टिक जाने दें। गर्भ की मुद्रा में आ जाएँ जैसेकि बच्चा गर्भ में सिकुड़ा रहता है। और तत्क्षण आप अनुभव करेंगे कि शांति उतर रही है, वही शांति जो माँ के गर्भ में थी।
तो अपने बिस्तर में, कंबल के नीचे, गर्भ में बच्चे की तरह गुड़ीमुड़ी हो जाएँ और शांत-मौन, बिना कुछ किये स्थिर पड़े रहें। कुछ विचार कभी-कभी आएंगे, उन्हें आने दें, आप उदासीन बने रहें, उनमें कोई दिलचस्पी न लें।
यदि वे आएँ तो ठीक, न आएँ तो ठीक। उनसे लड़ें नहीं, उन्हें धक्का देकर भगाएँ नहीं। यदि आप लड़ेंगे, तो आप विचलित हो जाएंगे। अगर आप उन्हें धक्का देकर भगाएंगे, तो वे और-और आएंगे। अगर आप चाहेंगे कि वे न आएँ, तो वे भी जिद्द में आ जाएंगे।
आप तो बस उनके प्रति उदासीन रहें। उन्हें वहाँ परिधि पर चलने दें, जैसेकि ट्रैफिक का शोर हो रहा हो -- और, सच में वह ट्रैफिक का शोर ही है -- मस्तिष्क की लाखों कोशिकाओं का ट्रैफिक जो एक-दूसरे के साथ संपर्क कर रही हैं, और ऊर्जा घूम रही है, विद्युत एक कोशिका से दूसरी कोशिका में छलाँग लगा रही है। वह एक बड़ी मशीन की गूँज जैसा ही है।
तो उसे चलने दें। आप उसके प्रति बिल्कुल तटस्थ रहें। आपको उससे कुछ लेना-देना नहीं है, वह आपकी समस्या नहीं है। दूसरे की समस्या हो सकती है, लेकिन आपकी नहीं है। आपको उससे क्या लेना-देना!
और आप हैरान हो जाएंगे जब वह शोर खो जाएगा, बिल्कुल खो जाएगा, और आप स्वयं में स्थिर अकेले बचे रह जायेंगे!
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